SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रार्थना जिन-जिन अवसरों पर खोया था धीरजअब वैसे क्षणों में रह सकूँ अविचलित --यह बल दो ! निर्द्वन्द्व जब-जब भी क्षुद्र बातों पर तानी है भृकुटी तेज किया है स्वर वैसी स्थितियों में रह सकूँ सहज --यह सम्बल दो ! जिन-जिन अवसरों को बिताया निष्क्रिय आलस में उनको भर सकूँ कर्म से, रचना से, --वह सृजन-क्षण दो ! चलो कुछ दिन अन्धकार ही सही। जहाँ-जहाँ भूला हूँ स्नेह की छाँह को आशीष-भरी बाँह को उन्हें याद रख सकूँ अहर्निश --यह कृतज्ञ स्मरण दो! तुमने भेजी थी सूर्य-किरण तो स्वागत का मंत्र पढ़ा था हमने। अब भेजी है अँधियारी रात इसमें गायेंगे प्रेम के गीत। -दिनकर सोनवलकर हे मनमीतकुछ दिन आँसू की धार ही सही चलो कुछ दिन अन्धकार ही सही। १७४ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy