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________________ मानव-जीवन की सर्वोच्च उत्थान-रेखा ही ईश्वरत्व की प्राप्ति है । इस विचारधारा ने समाज में व्याप्त पाखण्ड, अन्ध श्रद्धा और कर्मकाण्ड को दूर कर स्वस्थ्य जीवन-साधना या आत्म-साधना का मार्ग प्रशस्त किया । आज की शब्दावली में कहा जा सकता है कि ईश्वर के एकाधिकार को समाप्त कर महावीर की विचारधारा ने उसे जततंत्रीय पद्धति के अनुरूप विकेन्द्रित कर सबके लिए प्राप्य बना दिया--शर्त रही जीवन की सरलता, शुद्धता और मन की दृढ़ता । जिस प्रकार राजनैतिक अधिकारों की प्राप्ति आज प्रत्येक नागरिक के लिए सुगम है, उसी प्रकार ये आध्यात्मिक अधिकार भी उसे सहज प्राप्त हो गये हैं। शूद्रों का और पतित समझी जाने वाली नारी-जाति का समुद्धार करके भी महावीर ने समाज-देह को पुष्ट किया। आध्यात्मिक उत्थान की चरम सीमा को स्पर्श करने का मार्ग भी उन्होंने सबके लिए खोल दिया-चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, चाहे वह शूद्र हो, या चाहे और कोई। महावीर ने जनतन्त्र से भी बढ़कर प्राणतन्त्र की विचारधारा दी। जनतन्त्र में मानव-न्याय को ही महत्त्व दिया गया है। कल्याणकारी राज्य का विस्तार मानव के लिए है, समस्त प्राणियों के लिए नहीं। मानव-हित को ध्यान में रखकर जनतन्त्र में अन्य प्राणियों के वध की छूट है; पर महावीर के शासन में मानव और अन्य प्राणी में कोई अन्तर नहीं। सबकी आत्मा समान है। इसीलिए महावीर की अहिंसा अधिक सूक्ष्म और विस्तृत है, महावीर की करुणा अधिक तरल और व्यापक है । वह प्राणिमात्र के हित की संवाहिका है । हमें विश्वास है, ज्यों-ज्यों विज्ञान प्रगति करता जाएगा, त्यों-त्यों महावीर की विचारधारा अधिकाधिक युगानुकूल बनती जाएगी। 00 प्राचीन भारत में आज जैसी मुद्रण-कला नहीं थी; किन्तु तब लोगों का मन साहित्यमय था। उस समय के टिकाऊ ताड़ पत्र पर मोतियों को लजाने वाले अक्षरों में जो ग्रंथ मिलते हैं ; वे आज के युग पर उपहास करते हैं और अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते हैं । घर-घर में ग्रंथों के पुलिन्दे रखे हैं'; किन्तु अपने पूर्वजों से संरक्षित उन ग्रंथों को आज की नयी पीढ़ी कहाँ देखती है ? -मुनि विद्यानन्द मनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक १४५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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