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________________ क्या करें व्यक्ति, समाज, संस्थाएं, कार्यकर्ता, पत्र-पत्रिकाएं ३१ दिसम्बर १९७३ को मेरठ में एक पत्रकार ने मुनिश्री विद्यानन्दजी से कुछ प्रश्न किये थे, जिनके समाधान उपयोगी होने के कारण यहाँ दिये जा रहे हैं। संत्रास, संदेह, तनाव, अविश्वास और भ्रष्टाचार के इस युग में व्यक्ति को क्या करना चाहिये ? व्यक्ति एक महत्त्वपूर्ण इकाई है, उसे आत्मशुद्धि की अनवरत साधना करनी चाहिये। वह यदि परिशुद्ध होता है, तो समाज का ढांचा बदला जा सकता है, अन्यथा सब कुछ असंभव ही है। आज सामुदायिक क्रान्ति की बात सब करते हैं, आत्मक्रान्ति के लिए कोई नहीं कहता; किन्तु धर्म का अभियान व्यक्ति से ही आरंभ होता है। इसलिए मैं कहूँगा कि व्यक्ति को अपने जीवन में धर्मतत्व की गहरी साधना करनी चाहिये । धर्मविमुख होकर व्यक्ति कोई मंगलकारी भूमिका नहीं निभा सकता । व्यक्ति को सबसे पहला काम यह करना चाहिये कि वह अपने जीवन से कृत्रिमताओं को बिदा कर दे और अपनी साहजिकता में आ जाए । सहज होने पर कोई समस्या नहीं होगी। स्वाभाविकता समस्या नहीं है, बनावटीपन समस्या है। इससे लोकजीवन में कथनी-करनी का अन्तर मिट जाएगा, तनाव कम होगा, संत्रास मिटेगा । और परस्पर विश्वास का संस्कार जमेगा । जब तक व्यक्ति में स्वाभाविकता के झरने नहीं खुलते लोकमंगल की संभावनाएं समृद्ध नहीं होंगी। समाज को क्या करना चाहिये ? आज सामुदायिक जीवन बिलकुल फीका है, कहीं किसी में बर्बरता और हिंसा का सामना करने का साहस नहीं है ? इस संदर्भ में क्या करना होगा? क्या करना होगा, यह तो एक लम्बी प्रक्रिया है; किन्तु इतना अवश्य किया जाना चाहिये कि समाज नयी पीढ़ी के लिए उदार और युक्तियुक्त बने । उस पर कुछ भी थोपा न जाए, उसकी आकांक्षाओं की अवहेलना भी न की जाए और उससे ऊलजलूल अंधी अपेक्षाएँ भी न की जाएँ । उसके लिए धार्मिक आचार-विचार के साधन जुटाये जाएँ ताकि धर्म पर उसकी आस्था अडिग हो और आत्मा-परमात्मा के संबंध में वह स्वतन्त्र रूप में कुछ जान सके । बढ़ती हुई भौतिकता के समानान्तर यदि सहज आध्यात्मिकता को नयी पीढ़ी तक नहीं पहुँचाया गया तो वर्तमान स्थिति लगातार बिगड़ती जाएगी, उसमें सुधार की अपेक्षा हम नहीं कर सकते । इस दृष्टि से भौतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा में संतुलन बनाये रखना समाज के हित में ही होगा। १२० तीर्थंकर / अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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