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________________ का लाभ उठाया और ३-४ महीनों तक सारा नगर ही विद्यानन्दमय हो गया। उनको रविवासरीय सभाओं में १० हजार से २०-२२ हजार तक की भीड़ होती। ऐसी भीड़ जयपुर नगर के इतिहास में किसी सन्त के प्रवचन में प्रथम बार देखने को मिली थी। वर्षायोग के चार महीने एक-एक दिन करते निकल गये और जब मनिश्री के विहार की तिथि निश्चित हुई तो जयपुर की जनता अवाक्-सी रह गयी। मुनिश्री ने अपने चातुर्मास में २५ से भी अधिक विशाल एवं विशेष सभाओं को सम्बोधित किया और ३-४ लाख स्त्री-पुरुषों ने उनके प्रवचनों से लाभ लिया। उनकी अन्तिम सभा त्रिपोलिया बाजार स्थित आतिश मार्केट में रखी गयी जिसमें २५ हजार से भी अधिक उपस्थिति थी। मुनिश्री को जयपुर के नागरिकों की ओर से जो भावभीनी एवं अश्रुपूरित नेत्रों से बिदाई दी गयी वह जयपुर के इतिहास में उल्लेखनीय रहेगी। वे आगे-आगे थे और उनके पीछे-पीछे था हजारों का समुदाय । तीन मील तक यही क्रम रहा। आखिर यही सोचकर कि मुनिश्री वापिस आने वाले नहीं हैं लोगों ने उनके चरणों में नत-मस्तक होकर अपने घरों की राह ली । वास्तव में जयपुर के नागरिकों को वह चातुर्मास सदैव स्मरण रहेगा। अब तो हजारों नागरिकों की यही हार्दिक अभिलाषा है कि जयपुर को पुनः मुनिश्री अपने चरणों से पावन करें और अपने प्रवचनों में उन्हें जीवन-विकास का मार्गदर्शन दें। -डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल इन्दौर और सच ही व्यापार-उद्योग नगर इन्दौर सन् १९७१-७२ में तीरथ हो गया। गरीब-अमीर, मजदूर-मालिक, अध्यापक-छात्र, हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख-ईसाई, श्वेताम्बरदिगम्बर-स्थानकवासी, सभी जाति-पांति, धर्म, पद, मान-मर्यादा, विचार-भेद भूलकर स्त्री-पुरुष-बाल-वृद्ध नगर के हर कोने से हजारों-हजारों की संख्या में प्रतिदिन प्रातः निर्धारित समय पर उस ओर ही बढ़ते हुए नजर आते थे जिस ओर मुनिश्री के प्रवचनों का प्रबंध हो। चाहे मालवा मिल्स का मजदूर-क्षेत्र या गीता भवन का धर्मस्थल, चाहे वैष्णव विद्यालय का विशाल प्रांगण या रामद्वारा चौक या कपड़ा मार्केट का महावीर चौक, तिलक नगर-नेमीनगर के एकान्त इलाके सब ओर ही ठसाठस भरे हुए मंत्र-मुग्ध श्रोता, शान्ति परमशान्ति से-जिसे अंग्रेजी में पिनड्राप सायलेंस कहते हैंमुनिश्री के प्रवचनों में एकाग्र चित्त लगे हुए --और ऐसा नजारा एक दिन नहीं, दस दिन नहीं, पचास दिन नहीं, लगातार छह माह तक । आदिनाथ मांगलिक भवन का मुनिश्री का आवास-स्थल प्रातः से संध्या तक भक्तों से, विद्वानों से, कुलपतियों से, अध्यापकों से, छात्र-छात्राओं से, कला-मर्मज्ञों से लेखकों से, संपादकों से, कार्यकर्ताओं से, विचार-गोष्ठियों, तत्त्वचर्चा, शंका-समाधान, अध्ययन-अनुसंधान, मार्गदर्शन और तरह-तरह की गूंज-प्रतिगूंजों से ध्वनित होता रहा। मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520601
Book TitleTirthankar 1974 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Jain
PublisherHira Bhaiyya Prakashan Indore
Publication Year1974
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tirthankar, & India
File Size5 MB
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