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ओक्टोबर - २०१९
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विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
अनुसन्धान-७७नी प्रमुख, प्रशिष्ट, प्रौढ कृति छे : 'सिद्ध हेमव्याकरणकतिपयोदाहरणमयाः स्तवाः' सिद्धहेम व्याकरणना अनुसारे नाम अने धातुओनां रूपो, नियमो अने प्रयोगोने, अध्याय अने पादना क्रमे, गूंथी लईने आ स्तव रचाया छे. आवी रचना भाषा-व्याकरण-छन्द-अलङ्कार जेवा विषयो पर केवं ने केटलुं प्रभुत्व मागी ले - एनी कल्पना तो आ क्षेत्रना अभ्यासीओ ज करी शके. आनन्दनी वात छे के आवी प्रगल्भ-प्रौढ कृति हवे प्रकाशमां आवी छे. दुःखनी वात ए छे के आनी हस्तप्रत क्या हती के छे ते विशे कशी ज जाणकारी नथी. महो. विनयसागरजीए वर्षों पूर्वे आ कृतिनी प्रतिलिपि करी राखेली, तेथी आ कृति बहार आवी. आनुं सम्पादन-संशोधन आ विषयना अभ्यासी श्री विमलकीर्तिविजयजी महाराजना हाथे थयुं ए एक सुखद संयोग छे.
'संस्कृत गेय पञ्चस्तवी'ना पांच स्तवनो सुन्दर प्रासादिक रचनाओ छे. संस्कृतनी जीवंतता, मधुरता अने क्षमतानी परिचायक आवी गेय स्तवन प्रकारनी रचनाओ पुष्कळ छे अने हजी पण हस्तलिखित ग्रन्थ भण्डारोमा प्रकीर्ण-चूटक पत्रोमां दटायेली पडी हशे. पहेली अने बीजी रचना 'त्रूटक' अने 'चाल'नी ढबे गवाय एवी छे. बाकीनी रचनाओ शास्त्रीय अथवा देशी ढाळोमां गाई शकाय एवी छे.
एक संस्कृत 'थोय' पण आ अंकमां प्रगट थई छे. लौकिक छन्दमां रचायेली आ स्तुति भाववाही अने कर्णप्रिय कृति छे.
___ '१२ बोल पट्टक'नो बालावबोध एक गम्भीर अने संघ माटे दिशाबोधक कृति छे. जगद्गुरु श्री हीरसरि महाराजे संघना 'मार्गदर्शन अर्थे जे बार बोल - मुद्दा जाहेर करेला, तेनी पृष्ठभूमि तथा ते माटेना शास्त्राधार साथे १२ बोलनी समजूती आमां अपाई छे. सूत्रोना-शास्त्रोना पाठ साथे सामान्य नीतिशास्त्रना श्लोको पण आमां उद्धृत छे. सम्पादक मुनिराजनो आ प्रथम सम्पादन प्रयास छे. सम्पादन सरस थयुं छे. पृ. ६६ पर 'कुम्भभित्ति०' ए श्लोकना त्रीजा चरणमां रुष्टता० छे त्यां रुज्झता० होवानी सम्भावना छे. ए ज पृष्ठमां बे स्थळे 'लिखीय