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________________ अनुसन्धान-७८ सिर उपरि सरवौषधी, मूंकीनि हो नवरावि नीर३४ कि, अ० लूही अंग अंगजतणूं, पहरावि हो वली वस्त्र सरीर के ॥५॥ अ० मुगटादिक मणीमें जड्यां, पहिरावी हो आभरण अनेक के, अ० बसार्यो बहू नेहस्युं, सहसवाहिनि हो सिं बिकाई विवेक के ॥६॥ अ० चातुरंग दल परवर्यो, ३६चल्यो चारित हो लेवा थई सूर के, अ० वनि गुणस(सि)ल आव्यो वही, वाजंति हो बहु मंगलतूरके |७|| अ० तिहां शिबिकाथि उतरि, असोकतलि हो ईशानि आइके, अ० आभरणां वोसिरावर्ति, धरई खोलो हो तव धारणी माय के ॥८॥ अ० लोच करि पंचमुष्टिनो, थई आगई हो लोई माता "लारिके, अ० वांदि वीर जिणंदनि, कहि कुंअर हो प्रभु तारि हो तारि के ॥९॥ अ० धूल३८ मेलि धर्मरयणनि, मिथ्यामति हो तेह दरि निवारिके, अ० चिहुंगति हर चारित्त दीयु, सुखदायक हो दुखीयां साधार के ॥१०॥ अ० गगनथकी ३९कहे देवता, मत लि व्रत हो कहि वारोवारि के, अ० भोग निकाचित ताहरी, विण भोगवि हो व्रतभंग विचार के ॥११॥ अ० तात कहि तव तेहनि, घरि आवी हो दिन कोएक पूत कि, अ० भोगकरम पूरा करी, व्रत लेयो हो थायो अवधूत कि ॥१२॥ अ० वारी ति कहि वीरनि, उचरावो हो चारित्त एकंग के, अ० मा कहि भिख्या शिष्यनी, विहरो प्रभु हो देउं छु मनरंग के ॥१३॥ अ० इष्ट कां(क)त ए माहरि, जगगुरुजी हो जिउं रयणकरंड कि, अ०। उंबरपुष्प जिउं दोहिलो, सुणो साहिब हो तारणीक तरंड के ॥१४॥ अ० न रह्यो राख्यो ए देवनो, वयरागी हो वछ थयो वधमान के, अ० सार सीखामण दाखयो, जिउं राखि हो चित्त धरमनिधान के ॥१५।। अ० कणग रयण मातंग जे, वोसिरावि हो घोडा नि गाम के, अ० वहिल सुखासन पालखि, वोसिरावि हो अंतेउर ताम के ॥१६॥ अ० ३४. नारि - अ। ३५. धरी अधिक विवेक - अ। ३६. चढ्य - अ। ३७. थई माता हो आगे लेइ नारि के - अ । ३८. धर्मरयण मत छंडजे - अ, धूलि मेलै ज्ञानरतननै - ब । • ३९. तव - ब, एहवई गगनथकी कहें - अ ।
SR No.520580
Book TitleAnusandhan 2019 10 SrNo 78
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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