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अनुसन्धान-७८
"अट्ठमि पन्नरसीसु" एह, गाथा पाठ इत्यादिक जेह, कुपाक्षिकि पाठ फेरवि(वी)ओ, सागरमती वडउ इंम लविउ(वीओ). ९४ कुलमंडनसूरि जेहनूं, जूऊ समर्थन करिउं तेहनूं, ते आश्री पूछेवं करउ(5), मनथी सवे संका परिहरूं. ९५ बोल-३१ श्राद्धविधि ग्रंथि बोलिउं एह, त्रिविधई करी टालउ संदेह, फासू४३ नीर कसेलइ४४ करिउं, घडी दोय नंतरि नीरिउं४५. ९६ गली स्वछ करिउं ते जाणि, सूझइ४६ त्रि(ति)विहारनई पचखाणि, सागर कहइ ए आणिउं सही, पणि ते पाणी कल्पइ नहीं. ९७ बोल-३२ उपदेशपद वृत्तिनइं विषइ, "उदधाविव सर्वसिंधव" लिखइ, संमति पणि ए आणिउं काव्य, पंडित जन मन सुंदर भाव. ९८ कुमति पडिउ सागर इंम भणिं, आणिउं ए काव्य असंगतिपणइं, ए आश्रि करवउ सुविचार, जिम हुइ सवे संका परिहार. ९९ बोल-३३ गुणस्थानक क्रमारोहणइं, ग्रंथई पूरव सूरी भणइं, अभव्य जीवनइं हुइ मिथ्यात, व्यक्त सदा जिनशासनि ख्याति. १०० . सागर कहइ अव्यक्त मिथ्यात, अभव्य जीवनइं हुइ संघाति, पूर्व सूरिना ग्रंथ ऊथ(था)पी, कूडी युक्ति मा(मां)डइ बहु स्वपी. १०१
बोल-३४ भवभावना वृत्ति ओदार, वडी संग्रहणी वृत्ति अणुसारि, व्यवहार रासि जे आविओ जीव, उत्कृष्टी स्थिति हुइ सदीव. १०२ अनंत पुद्गलपरावर्त करइ, पछइ मुगति तणा सुख वरइ, सागर आह-पुद्गलपरावर्त करइ असंख, सागरमती भाखइ जिउं८ मंख ९. १०३
बोल-३५ चउद पूरवनुं बोलिउं सार, पंच परमेष्टि मंत्र नवकार, परपक्षी मिथ्यामति गणउ, गणतां लाभ हुइ अति घणु(णउ). १०४ सागरमती ते एणी परि भणई, जे परपक्षी नुकार गणई, समइ समइ अनंत संसार, वृद्धि करइ नवि पामइ पार. १०५ बोल-३६ बोल छत्रीस ए सागर तणा, जेहमां उत्सूत्र तणी नही मणा५१, उत्सूत्र जाणी श्रीविजयसेनसूरि, गछथी सागर कीधा दूरि. १०६