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अनुसन्धान-७७
मेघरथ राजानइ भवि, कीधी करुणा के पारेवा काजि कै, सरणागत साथ ओ तुमइ परख्यो हे दिल मइ जिनराज कै ॥५॥ शां० ॥ गिरुओ ठाकुर ताहरो, सेवकनी हे करो सार संभाल कै,। उत्तम प्रीति ज ते सही, जाणीनइ हे पालइ सुविशाल कै ॥६॥ शां० ॥ श्यापुर सुखकर शांतिजी, मृगलंछन शेवइ जित जास कै, मणिविजय बुधराजनो सीस रत्ननी हे प्रभू पूरो अरस कै ॥७॥
शांति जिणेसर पूजइ । इति श्री शांतिनाथ स्तवन सम्पूर्णम् ॥
श्री शङ्केश्वर पार्श्वनाथ भगवाननुं स्तवन
(श्रीहंसभवनसूरि रचित)
४६ गाथाना आ दीर्घ स्तवनमा ३ ढाळो छे. अन्ते कलश छे. स्तवनमां श्रीपार्श्वनाथनो महिमा गावामां आव्यो छे. शङ्केश्वर पार्श्वनाथनी प्रतिमा साथे जोडायेली कथा अहीं कहेवाई छ. श्री नेमिनाथना समयमां आ प्रतिमा हती अने तेना न्हवणजळथी श्रीकृष्णे जरासंधनी जराथी अचेतन थयेल सैन्यने शुद्धिमां आण्युं हतुं तेनी कथा अहीं मनोहर रीते कहेवाई छे..
कलशमां रचनाकारे पोतानुं नाम श्रीहंसभवणसूरि दर्शावेल छे. स्तवन सम्पूर्ण कर्या बाद आपेली माहिती जणावे छे के प्रस्तुत काव्य श्रीस्थम्भण पार्श्वनाथना प्रसादथी सं० १८३७नां भादरवा वद पांचमना सोमवारे पं. कुंअर सौभाग्यगणि द्वारा लखायेलुं छे. स्तवननी रचनासाल सं. १६१० छे.
स्तवनमां रचनाकारे क्यारेक एक शब्द उपर बीजो शब्द सुधारीने लख्यो छे. क्यांक हुस्व इ अने दीर्घ ई बन्ने करेल छे. अकने भूसवा माटेनुं चिह्न करवानुं रह्यं होय तेम जणाय छे. स्तवनने अन्ते गाथा कुल ४७ जणावेल छे. परन्तु, ओक स्थळे अंकलेखनमा दोष छे : २८मी गाथामां नंबर लखायो नथी ए जो क्रम में आपेल छे. फरीथी एवी भूल ४३ गाथा पछी ४४मी लखवाने बदले ४५ लखायेली छे. लिप्यन्तर करतां आ बन्ने क्रम सुधार्या होवाथी स्तवन कुल ४६ गाथाओ वाळू बने छे. कृतिमां ज्यां ष छे त्यां ख ना अर्थमां होय तो ख करी लीधेल छे.