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________________ ७६ अनुसन्धान-७७ लिखउ छइ, पणि तेहनी प्रतिमा वांदवी-पूजवानी निषेधनइं काजि नथी लिखु, ए अर्थ इहा सत्य करी मानवू । तिवारं पूर्वापरविरोध टलइ अनइ खरतरप्रमुखनी प्रतिमा श्रीहीरविजयसूरीश्वरइ, श्रीविजयसेनसूरीश्वरई वांदी, अनइं संप्रति श्रीविजयदेवसूरीश्वर वांदइ छइ । ते माटि ए बोलनु विपरीत अर्थ करइ छ। ते उत्सूत्रभाषी कहीइ, अनइं उत्सूत्रभाषीनइ तु अनंत संसारनी वृद्धि थाइ । यथा - "उस्सुत्तभासगाणं बोहिनासो अणंत संसारो । पाणच्चये वि धीरा उस्सुत्तं ता न भासंति" ॥१॥ इति । तथा देवलोक, भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क, मेरुप्रमुखनइ विषइ जे प्रतिमा छइ ते किहा तीर्थंकरनी ? अनइं किहा साधुनी प्रतिष्ठी छइ ? जिम ते प्रतिमा अणप्रतिष्ठि वडानी आज्ञाइं वांदवा-पूजवा योग्य छइ तिमा(म) कदाग्रहबुद्धि मुकीनई वांदवी-पूजवी, ए वातनी श(शं)का न करवी, गुरुनी आज्ञा सघलइ प्रमाण करवी । यथा - जं किंचि नाम तित्थं सग्गे पायाले(लि) माणसिए (माणुसे) लोए । जाइं जिणबिंबाई ताई सव्वाइं वंदामि ॥१॥ यथा वा - कारणविउ(ऊ) कयाइ(ई) सेअं कायं [वयं]ति आयरिया । तं तह सद्दहिअव्वं भविअव्वं कारणेण तहिं ॥ [उपदेशमाला ९५] ॥ ए छठो बोल ॥ तथा श्रावक परपक्षीनी पुत्री परणइ, तेहना हाथनु राध्यु जिमइ छइ अनि पोतानी पुत्री परपक्षीनइं परणावइ छइ, तिहां तेहनो धर्म करइ छइ, ते पोतानइ घर आवी जिमइ छइ, तिवारि सम्यक्त्वादिक धर्म फोक थातो नथी । अनि ए कार्यनइ विषइ सहु को प्रवर्तइ छइ । अनि कोएक कहइ जे परपक्षीनइ जिमवा तेडइ, तेहनु साहामीवत्सल फोक थाइ; ते मार्टि श्रीहीरविजयसूरीश्वरई सातमा बोलनइ विषइ लिखुं छइ - "जे साधर्मिकवात्सल्य करतां स्वजा(ज)नादिक संबंध भणी कदाचित पर[प]क्षीनि जिमवा तेडइ तु ते मार्टि साहमीवत्सल फोक [न] थाइ" ॥ ए सातमो बोल ॥ ___तथा आवश्यक प्रवचनसारोद्धारप्रमुख ग्रंथनइ विषइ आठ निह्नव कह्या छइ, अनि कोएक समस्त परपक्षीनइं निह्नव कहइ छइ ते मार्टि आठमा
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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