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जून - २०१९
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तथा जिम लोकनइ विषइ कलंबिनां घरना, रबारिना घरना पाणिइ सहित छासि-दूध, तथा तंबोलिना घरनइ पाणइं छाटा पानवडानी प्रवृत्ति माटइं उत्तम वर्ण सहु को वावरइ छइ, पणि तेहना घरनुं पाणी पिय तु नातिबाहरिनुं दूषण ऊपजइ, तिम खरतरप्रमुखनी प्रतिमा वडानी परंपरा माटइं वांदवी-पूजवी, पणि तेहना यतिप्रमुखनइ वांदवा नही, वांदइ तु दूषण ऊपजइ, ए दृष्टांत सांभलीनइ हठवाद मुंकीनइ धर्मार्थी हुइ, तेणइ गुरुनी आज्ञा प्रमाण करवी । केवल-श्राद्धप्रतिष्ठित चैत्य, इहां 'केवल' शब्दि गुरुना उत्थापक श्राद्ध कडुआमति जाणवा । तिणि प्रतिष्ठि जे प्रतिमा, तेह न वांदवी-पूजवी निषेधी छइ, पणि बीजी कोए निषेधी नथी ते प्रीछयो ॥ ए चोथो बोल ॥
तथा दिगंबरनी प्रतिमा (१), केवलश्राद्धप्रतिष्ठितप्रतिमा (२), द्रव्यलिंगीनइ द्रव्यइ निष्पन्न प्रतिमा (३) कटकमाहिथी आवी हुइ, देवाथी लीधी हुई तथा पडी लाधी हुइ ते गीतार्थ पासिं प्रतिष्ठावीनइ वांदवी-पूजवी शास्त्रमांहिं कही छइ । ते माटि श्रीहीरविजयसूरीश्वरई पांचमा बोलनइ विषइ लिखिउं छइ - "जे स्वपक्षीना घरनइ विषइ पूर्वोक्त त्रण्यनी अवंदनीक प्रतिमा हुइ, ते साधुनइं वासक्षेपि वांदवा-पूजवा योग्य थाइ ॥ ए पांचमो बोल ॥
___तथा रखे कोइनइं एहवी शंका ऊपजइ जे खरतरप्रमुखनी प्रतिमा वांदवी-पूजवी कहिउ तेहनी प्रतिष्ठाइ मानवी थइ तिवारइं खरतरप्रमुखनी प्रतिष्ठाई प्रतिमा प्रतिष्ठावीइ तेहइ वांदवी पूजवा योग्य थाइ, ए शंका टालवानइ काजि अनि खरतरप्रमुखनी प्रतिष्ठा मानवी निषेधवानइ काजि श्रीहीरविजयसूरीश्वरज्ञ छठ्ठा बोलनइ विषइ लिखिउं छइ जे "शास्त्रिं साधुनी ज प्रतिष्ठा छइ" हवइ ए बोल ऊपरि कोएक कदाग्रह करीनइं विपरीत अर्थ करइ जे इणि बोलई खरतरप्रमुख असाधुनी प्रतिष्ठा प्रतिमा वांदवा-पूजवानु निषेध कर्यु छइ, ए अर्थ इहां खोटु जाणवु । जे मार्टि चोथा बोलनइ विषइ श्रीहीरविजयसूरीश्वरज्ञ खरतरप्रमुखनी प्रतिमा वांदवी कही अनई पोतई वांदी तो इहां ते प्रतिमा वांदवानु निषेध किम कहइ ? अनि आपणा पूर्वाचार्य तो एहवा नथी, जे कहइ जुदुं अनइ करइ जुएं । ए पूर्वापर विरोध थाइ अनइं गणधरनां वचन पूर्वापरविरोधि न हुइ । ते माटि ए बोल खरतरप्रमुखनी प्रतिष्ठा मानवी निषेधवानइ कार्यि'
१. काजि ।