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जून - २०१९
वाचनाचार्य शीलशेखरगणिविरचिताः सिद्धहेमव्याकरणकतिपयोदाहरणमया: स्तवाः॥
- सं. उपा. विमलकीर्तिविजय गणि
सिद्धहेम व्याकरणना अध्ययन-अध्यापननो प्रचार मध्यकाळना जैन संघमां खूब रह्यो हशे, तेम ते विषे लखायेली-रचायेली अनेक रचनाओ जोतां लागे छे. प्रस्तुत स्तवात्मक कृति पण ते व्याकरणनां उदाहरणोने केन्द्रमा राखीने ज रचाई छे, जे आ व्याकरणना अध्येताओ माटे अभ्यासोत्तेजक शम्बल पूरुं पाडे छे. आ कृतिमां ११ 'स्तव' छे. तेमां व्याकरणना १ थी ४ अध्यायना १६ पादोनां उदाहरणोने आवरी लेवामां आव्यां छे. आवी व्याकरणमय रचना, ते पण प्रभुनी स्तुतिरूप रचना बनाववी ए केटलुं कठिन काम छे ते विद्वानोने तरत समजाशे. काव्यशास्त्र अने व्याकरणशास्त्रमा ऊंडं पाण्डित्य होय, उपरांत ते बन्नेने सांकळीने काव्यसर्जन करवा जेवी प्रतिभा पण होय, त्यारे ज आईं सर्जन थई शके छे. आ स्तवनोना रचयिता आ प्रकारना प्रतिभावंत विद्वान हता तेनो ख्याल तो आ स्तवनो जोतां ज समजाई जाय तेम छे.
कर्तानो मुख्य आशय व्याकरणना प्रयोगोनो बोध कराववानो छे. काव्यमय भक्ति करतां जतां आवो बोध थई जाय तो अभ्यासीओने वधु सुगमता थाय तेवा कोई आशयथी आ रचना थई छे. जो के कर्ता रचनाना छेडे अभ्यासीओ समक्ष आकरी शरत मूके छ : "आ स्तवनो तेणे ज जोवा, जेने व्याकरणनां सूत्रो जीभना टेरवे रमतां होय, अने तेना अर्थोनो विशद बोध होय." अर्थात् नबळा विद्यार्थी माटे आ रचना नथी.
रचनामां कुल ११ स्तव छे. ४०२ श्लोकप्रमाण सम्पूर्ण रचना छे. १ थी ५ स्तव अनुक्रमे आदिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, महावीर – ए पांच जिननी स्तवनारूप छे. ६-७-८ मां महावीरस्तुति, तथा ९-१०-११ मां सर्व(साधारण) जिनस्तवना छे.
आ रचनाना कर्ता वाचनाचार्य शीलशेखरगणि छे; तेओ श्रीदेवसुन्दरसूरि महाराजना शिष्य हता; तेमनो सत्तासमय १४मा शतकनो उत्तरार्ध छे. तेमणे अनेक स्तोत्रोनी रचना करी छे.
जयपुरस्थित महो. स्व. विनयसागरजीए अमना अभ्यासकालमां कोईक