________________
७०
अनुसन्धान-७७
एहनु अर्थ - सरलस्वभावी मिथ्यादृष्टिइ भला, पणि मत्सरवंत सम्यग्दृष्टीइ भला नही । जिम काला सूडला भला जे मार्टि फल, शालि खाइ, पणि उजलाई बगलां भला नही जे मार्टि माछलां खाइ ॥७॥
तथा जे कहइ छइ मिथ्यात्वीप्रमुखनुं धर्मकरणी अनुमोदीइ नही, ते खा(खो)टुं । जे कोइनो थोडोइ गुण होइ ते शास्त्रि अनुमोदवु कहउं छइ । यथा- "दंसणनाणचरित्ते तवविणयं जत्थ जत्तियं जाण । जिन(ण)पन्नत्ते भत्तीइ पूअए तं तहिं भावं ॥"
इति बृहत्कल्पभाष्यतृतीयखण्डे । एहनु अर्थ - ज(ज्ञा)न, दर्शन, चारित्र, तप, विनय पार्श्वस्थादिकनइ विषइ ते(जे)तलु जाणीइ तेतलु भाव-भक्ति करीनई पूजवउं मानवउं ॥८॥
तथा नयसार, धनश्रेष्ठि, संगमादिक मिथ्यात्वि- पणि दान घणा ग्रंथनइ विषइ अनुमोदीउं दीसइ छइ ॥९॥
तथा तीर्थंकरना पारणानइ विषइ, सातिशय साधुना पारणानइ विषइ, पंचदिव्यनी वेलाइ "अहो दानम् अहो दानम्" ए उद्घोषणापूर्वक अभिनवश्रेष्ठिप्रमुखनां दान देवताई शास्त्रनइ विषइ अनुमोद्या दीसइ छइ । तिमज साक्षात्पणि श्रीआचारांगवृत्त्यादिकनइ विषइ साधुइं अनुमोदीउ दीसइ छइ । जे शीतकालिं साधुनइं अग्निशकटी, निमंत्रण कीg तिवारइ साधुइ कउं- "मुजनइ न कल्पइ पणि ति पुण्यप्राग्भार उपराज्यु" ॥१०॥
____ तथा श्रीमुनिसुंदरसूरिं उपदेशरत्नाकरग्रंथनइ विषइ जिनशासनना प्रभावक कह्या छइ, ते मध्ये सातिशयचारित्री श्रीजिनप्रभसूरि आण्या छइ । एतला माटइ कुणिं किं अज्ञानपणि कदाग्रहबुद्धि करीनइ स्वकृतग्रंथनइ विषइ श्रीमुनिसुन्दरसूरीश्वरनइ अज्ञानी कह्या छइ । ते कहनार केवल अभिनिवेशग्रस्त जाणवू ॥११॥ तथा- "श्रीसूरयः केऽपि कलौ युगेऽभवन् दीपा इव श्रीजिनशासनौकसि। ___ अत्रोच्यते म्लेच्छपतिइ(प्र) बोधकृ-ज्जिनप्रभः सूरिवरो निदर्शनम्॥[६८]
इत्यादिक अक्षरनइ अनुसारइं श्रीसोमप्रभसूरिं उत्सूत्रभाषी श्रीजिनप्रभसूरिनी अनुमोदना कीधी छइ । इति श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्योपाध्यायश्रीचारित्ररत्नगणितच्छिष्यपण्डितश्रीसोमधर्मगणिविरचिता