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जून - २०१९
१२ बोल - पट्टक : बालावबोध
- सं. मुनि श्रुताङ्गचन्द्रविजय (सोमशिशुः)
__ प्रस्तुत कृति 'बार बोलनो पट्टक'ना बालावबोधरूप छे. जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीओ सं. १६४६ना पोष शुदि १ने दिवसे शुक्रवारे पाटणमां तपगच्छनो चतुर्विध संघ एकठो करी जैन संघनी अकता माटे बार बोलनो पट्टक बनाव्यो हतो.
आ पट्टक पर पंडित श्रीशुभविजयजीओ सं. १६८०मां बालावबोध रच्यो छे. पंडित श्रीशुभविजयजी जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीना शिष्य छे. (जैन परम्परानो इतिहास, भाग-३ पुस्तकमां पृष्ठ ३६४ पर पण्डित श्रीशुभविजयजीने महो. श्रीकल्याणविजयजीना शिष्य बताव्या छे परन्तु श्रीशुभविजयजी रचित 'सेनप्रश्न'नी अने प्रस्तुत कृतिनी प्रशस्तिमां ग्रन्थकार श्रीशुभविजयजी पोताने श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीना शिष्य ज दर्शावे छे, महो. श्रीकल्याणविजयजीनो नामोल्लेख पण नथी करता.) 'सेनप्रश्न'नी प्रशस्ति अनुसार श्रीशुभविजयजीओ तर्कभाषावार्तिक, काव्यकल्पलतामकरन्द, स्याद्वादभाषासूत्र तथा तेनी वृत्ति, काव्यकल्पलतावृत्ति इत्यादि ग्रन्थोनी रचना करी छे.
प्रस्तुत कृतिनी रचनाशैली आ प्रमाणे छ : पहेलां जे-ते बोलनी जरूर शा माटे छे ते जणावी, त्यारबाद बोलनुं समर्थन करनारा शास्त्रपाठो आपी, ते शास्त्रपाठोनुं यथायोग्य विवेचन करी, अन्ते बोलनो उल्लेख कर्यो छे. शास्त्रपाठोने जोता ग्रन्थकारश्रीनी विद्वत्तानो सहजताथी ख्याल आवी जाय छे.
आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराजे प्रस्तुत कृतिना सम्पादन माटे पोताना अंगत संग्रहमांथी प्रत आपी छे. पूज्य आचार्य महाराजे तथा मुनिश्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी महाराजे प्रस्तुत कृतिनुं सम्पादन करवामां घणी मदद करी छे. ते माटे हुं तेओश्रीनो खूब ऋणी छु.
अन्ते, हस्तप्रत-सम्पादननो आ मारो पहेलो ज अनुभव छे. तेथी आमां घणी बधी क्षतिओ रही गई हशे. ते माटे क्षमा करवा अने ध्यान दोरवा विद्वज्जनोने नम्र विनंति.