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जून - २०१९
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डॉ. भगवानदास पटेलने पुण्यविजयजी संशोधन-चंद्रक अर्पण (ते प्रसंगे अपायेल वक्तव्य)
___ - हसु याज्ञिक
डॉ. भगवानदास पटेलने पू. पुण्यविजयजी संशोधन-अवॉर्ड प्रदान थई रह्यो छे ते प्रसंगे उपस्थित रहेवाना आनन्द साथे सन्मित्र भगवानदासने हृदयपूर्वक अभिनन्दन आपुं छु, तेम ज संस्थाए उचित रीते ज आदिवासी साहित्यकृतिना मौखिक पाठ - oral text-ना सम्पादन-संशोधननो पण भारतीय-प्रच्यविद्या Indological studyनी संलग्न शाखा रूपे स्वीकार कर्यो अने प्रारम्भमां ज सर्वथा योग्य एवा अभ्यासीनी पसंदगी करी ते माटे मुख्य सूत्रधार अने संशोधनशास्त्री एवा पू. श्री विजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजीने, डॉ. कुमारपाळ देसाई तथा पसंदगी समितिना सदस्यश्रीओने आनन्द साथे अभिनन्दन आपुं छु. अहीं पू. श्री विजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी विशे 'संशोधनशास्त्री' एवं नर्बु ज पर्यायवाचक विशेषण हुं सहेतुक सार्थक रूपमा ज प्रयोगँ छु. इन्डोलोजिकल स्टडीमां पाठनिर्धारण-संशोधित-सम्पादन अनेक थया, परन्तु आ प्रकारनां संशोधनना हेतु अने स्वरूपनी शास्त्रीयतानी मिताक्षरी चर्चा तो मारी जाणकारी प्रमाणे विजयशीलचन्द्रसूरीश्वरजी द्वारा ज 'अनुसन्धान'ना माध्यमे आलेखाई. आ बधी ज चर्चाओ, विशद छणावट, सुवर्ण वाक्योमा निबंध संशोधननां बधां ज पासांओना सिद्धान्तो तारवती तत्त्वचर्चाओ ज, जे आपणे त्यां हजु सुधी थई नथी, अन्यत्र पण जोवामां आव्युं नथी, ते संशोधन शास्त्र बांधवानो पायो नाखे छे. आथी ज मारा प्रेरणामार्गदर्शनमां ए तंत्रीलेखोनुं विषयानुसारी सम्पादित स्वरूप तैयार करवानुं सूचन करेलुं छे.
भगवानदास पटेलने अवोर्ड अपाय छे तेना मारा बेवडा आनन्दनुं कारण ए छे के एमनां बधां ज सम्पादनो-संशोधनोमां हुं प्रत्यक्ष रीते ज संकळायेलोसंडोवायेलो रह्यो. मुखपरम्परानी महाकाव्यकुळनी सुदीर्घ कृतिओना स्वरूप, प्रकार, लक्षणो, रजूआत -Performance मुखपाठनुं लिपिबद्ध रूप, transcription of oral text, एनी पद्धति, एनां भयस्थानो, इन्डोलोजिकल स्टडी