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________________ जून - २०१९ ११९ श्री चरमतीर्थपति दीक्षामहोत्सवाधिकार स्तवन -सं. मुनि शीलचन्द्र विजय (डहेलावाळा) पू. मुनिश्री गुणविजयनां शिष्य श्री सुमतिविजयजीओ ५६ कडीओने पांच ढाळमां वहेंचीने आ स्तवननी रचना करी छे. शैली सरल अने सुन्दर छे. छेल्ले कळशमां पोताना गुरु अने दादागुरुनां नामनो उल्लेख कर्यो छे ते सिवाय बीजी कोई वात जणावी नथी. जैन गुर्जर कविओ भा. ६मां सुमतिविजयनां शिष्य मुनि उत्तमविजयजीओ ४५ आगमनी पूजा रची होवानो उल्लेख छ सं. १८३४मां. आटली विगतना आधारे प्रस्तुत स्तवन पण १८३४नी आसपासमां सुमतिविजयजी द्वारा रचायु हशे एम अनुमान थई शके.' स्तवनने अन्ते लख्युं छे के "इति श्री चरमतीर्थदीक्षामहोत्सवाधिकारस्तवनम्" अमां तीर्थ पछी पति शब्द लखवो रही गयो होय अम लागे छे. त्यार पछी सुभाषितना बे श्लोक लख्या छे. स्तवननी १ली ढाळनी ६ठ्ठी अने ७मी कडीमां वीरप्रभुना मोटाभाई साटे नन्दीवर्धन अ प्रमाणे नामोल्लेख करायो छे त्यार पछी दरेक ठेकाणे नन्दीराज अने नन्दीनृप ओ प्रमाणेनो शब्द प्रयोजायेल छे. स्तवननी १ली ढाळमां प्रभुवीरनो गृहवास सम्बन्धी परिचय करावी दीक्षा माटेनी नंदीवर्धन राजाओ करेल अभिषेक सम्बन्धीनी व्यवस्थानुं वर्णन छे. २जी ढाळमां विविधजातिना अने नाना प्रकारनां द्रव्योथी संयुक्त अवा जलभृत कळशो द्वारा सुर-नरोओ करायेल प्रभुने स्नान त्यार पछी प्रभु पर करायेल विशिष्ट प्रकारनो शृङ्गार ने अन्ते नन्दीराजाओ प्रभु माटे केवा प्रकारनी शिबिका तैयार करावी तेनुं रोचक वर्णन छे. ३जी ढाळमां प्रभुनु शिबिकामां आरोहण साथे साथे कुलमहत्तरा अवं धावमाता आदिनी व्यवस्था ने त्यारपछी इन्द्र वगेरेओ शिबिकाने केवी रीते वहन करी इत्यादिनुं क्रमशः वर्णन छे. ४थी ढाळमां प्रभुनां वरघोडानी विशेषताओ अने तेमां राजा वगेरेनो क्रम बताववामां आव्यो छे ने छेल्ली ५मी ढाळमां ज्ञातखण्ड नामना वनमां जईने प्रभु १. स्तवननी ५६मी कडीमां तथा कलशमां स्पष्ट उल्लेख छे ते प्रमाणे, उपा. यशोविजयजीना शिष्य पं. गुणविजयना शिष्य सुमतिविजयनी आ रचना छे. -शी.
SR No.520579
Book TitleAnusandhan 2019 07 SrNo 77
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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