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________________ जान्युआरी- २०१९ सीलथई संकट टलई, संपदकुं आय मिलइ, जउ समकित भलइ, तउ किहां पाईयइ ॥ भ० ॥२०॥ अति घण परिग्रह दुःख ही कुं हेत हे, कोइ नर नरपति, चलत्त परनमत्त, परिग्रह देखि मित्त, साथ नांहि लेत हइ । देखउ क्युं न ब्रह्मदत्त, सयंभुम चक्रवर्त्त, सातमी नरग पत्त, सूत साखि देत हइ । खान-पीन भाईबंध, पाप चढइ तोरइ कंध, काहे मूढ होत अंध, हीय कच्छू चेत हइ ॥ भ० ॥२१॥ संतोष करत जीव नित सुख पायहइ, संतोष करत नर, दुःखको सागर तरि, परम आणंद घर, ततक्षन आय है । देखो धुं कपिल मुनि, संतोष करत जिन्नि, पायो हइ केवलधन्न, धन्न गुणगाइ हैं । जिनवर गणधर, मुनिवर संतोष करि, [...] शिवपुर जाय है ॥ भणइ० ॥२२॥ क्रोध हइ अनरथ मूल क्रोध दूरि छोडि रे, क्रोधथई नरक जाय, वाघ-सिंघ-सर्प थाय, क्रोधहीतें भ्रम लाइ, भव कोडाकोडि रे । क्रोधहीतें प्रीत जाइ, क्रोधहीतई विष खाइ, क्रोध बहु दुःखदाय, जीव आणि खोडि रे । क्रोधकी उपनी झाल, जूओ समैं ततकाल, करि राखउ आलमाल, पीछा मन छोडि रे ॥ भ० ॥२३॥ खिमा करउ भरपूरि म म करउ रीस रे, खिमाहीसुं वैर जाइ, दुसमन लागइ पाइ, त्रिभुवन जस थाइ, सही विसावीस रे । देखो धुं गयसुकुमाल, खिमा करि क्रोध मारी संसारको पायउ पार, वंदु निसदीस रे ।
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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