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जान्युआरी- २०१९
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लांछणडइ धरणेंद्र, सामिणि साहिज चउं करइ; बइठा जे जोगींद्र, सर्वज्ञ सामी थांभणा. ३० संसारि विसम कलाप, दीसइ सामी पासजिणं; फेडइ भव-दह-ताप, सयल संघ रक्षा करइ. ३१ सुर-नर करइ नितु सेव, चरण-कमलं तुम्ह पामीअं; पास जिणेसर देव, संख न लाभइ सई धणी. ३२ सिद्धि-बुद्धि तणा दातार, वीनतडी अवधारी; संकट-भंजणहार, कामिक तीरथ पास जिण. ३३ पास तणउ परमाण, पढइ गुणइ जे सांभलइ; तीह घरि नितु सुविहाण, चिरकालिइ चाइओ भणइ. ३४
॥ श्रीथंभणपार्श्वनाथवीनती समाप्त ॥
१०. थम्भण-पार्श्वनाथ-स्तवन (अपूर्ण) पय पणमिय सयल जिणिंद देव, देवासुर मानव लहिय सेव; परमाणंद-दायग घुणुंअ हेव, थंभणपुर-मंडण पास देव. १ पाप-तिमिर-निवारण-विमल-हंस, वर-वामादेवी-उअर-हंस; आससेण-नरेसर-कुल-वतंस, दीपाव्यु जेणइ इक्खुवंस. २ वाणारसी नयरी जसु जम्म, जय भंजिय-दुज्जय-मोह-चम्म!; जय निज्जिय-दुज्जय-अट्ठ-कम्म!, पयडीकिय-सुहकर-विमल-धम्म!. ३ जय निज्जिय-दुज्जय-मयण-बाण!, कमठासुर-दुज्जय-दलिय-माण!; अंगीकिय-जण-गण-पवर-आण!, भविअण-मण-भाव-जाण!. ४ जय जण-कमलागर-सरय-चंद!, जस सेव करइ मुणि-राय-विंद; जय भंजिय-माया-वल्ली-कंद!, जय केवलनाणी! वर-दिणिंद!. ५ जस सेव करइ धरणिंद राया, पदमावती सेवइ जसु पाया; जय सयल-सुरासुर-मणुअ-राय!, जस सोहइ निम्मल नील काय. ६ भव-सायर-तारण-पवर-जाण!, सुर-मानव पत्त(भ?)णइ गुणह गाण; सुख-दायग! नायग! गुण-निहाण!, सेवकनइं आपउ विमल ठाण. ७