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________________ २८ अनुसन्धान-७६ सिरिविजयदानसुरींद गीरूआ सूरि-गुणि करी दीपता, संतोष करी भगवंतजी मद मोह रिपू बल जीपता; तसु सीस-लेसिंइ गूणसोभागिई थुणिउ पास जिणेसरू, संवत सोल नवोतरे सिरिकरणसाधू कृपाकरू. ५ ॥ इति श्रीथंभणपार्श्वनाथस्तवनम् ॥ (गुजराती जैन संघ - कलकत्ता - १०३४) ८. वाचक-शुभवर्धन-रचित स्थम्भन-पार्श्वनाथ-विनति अरि-थंभण थंभण श्रीपास, सेवक-जननी पूरइ आस; दुर्जन दुर्जननइ तुं संहरइ, ध्याता जन आपद निस्तरई. १ थंभण पास आस सवि पूरि, चाड पिसुण जणनइ तुं चूरि; वईरी सवि लेजे निर्वंश, कमलापतइ जिम कीधुं कंस. २ . थंभण पास दुष्ट निर्दलई, जिम मृगेंद्र आवी मृग मि(गि)लइ; दुष्ट सवे ऊतारइ माण, कमठासुर जिम भंजइ प्राण. ३ निराधार साधारु देव, थंभण पास तणी करूं सेव; संकट विकट नसाडइ दूरि, अंधकार जिम ऊग्यइ सूरि. ४ इम तवीउ थंभण पासनाह, धरणिंद्र-पुमावइ तणु नाह; सिरि खंभनयरि जिणि किय निवास, शुभवर्धन वाचक पूरि आस. ५ ॥ इति श्रीथांभणापार्श्वनाथ वीनती ॥ ॥ सं. १६२४ वर्षे मौनइग्यारसिदिने श्रीकुमारगिरौ बुधवारे लिखितानि एतत्पत्राणि ॥ (ला.द. विद्यामन्दिर - ६२६८) ९. थम्भण-पार्श्वनाथ-विनति वरसह लाख इग्यार, इंद्रि पास जिण पूजीया; कोइ न ‘जाणइ पार, आगइ ओ अणागता. १
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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