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________________ १३६ अनुसन्धान-७६ तुंह जि गति तुंह जि मति तुंह जि मम जीवनं तात तूं परमगुरु कम्ममलपावनं, कम्मकर विणययरु जोडि कर वीनवउं देहि मूं अलजया दंसणं अभिनवं. 'विणययर'मां 'विणयपुरु' होवानी संभावना छे. बाकीनी बे कृतिओ शुद्ध प्राकृतनी छे. कोई विद्वान मुनिवरे त्रण कृतिओ एकत्र करी जणाय छे. चतुर्विंशति जिनराज स्तुतिओ अवचूरि सहित होवाथी आस्वाद्य छे. दरेक श्लोकनुं चोथु चरण समान छे, पण श्लेष, सन्धि, समास, अनेकार्थक शब्दोना विनियोगथी भिन्न अर्थ नीकळे छे. कृतिसम्पादकनी धारणा मुजब 'सकल' शब्दना आधारे कृतिना कर्ता सकलचन्द्र गणी होवानी संभावना नकारी शकाती नथी. अजितशान्ति स्तवननी अनुकृतिरूप रचनाओ अनेक छे. अहीं एक अनुकृति प्रसिद्ध थई छे. आ रचना प्रसिद्ध अने पूर्वप्रकाशित होवानो भास थाय छे. श्लो. ९ना प्रथम चरणमां 'नदनुदनुजाहिन' छे त्यां 'तदनु दनुजाधिप०' पाठ संभवे. 'उपाख्यानकानि' नामक संग्रहलेख रसप्रद छे. कवि-वक्ताओने उपयोगी शब्दावली / प्रयोगो / उपमाओ व०नो संग्रह कोई साहित्यप्रेमी विद्वाने को छे. वर्णकसमुच्चय जेवी आ रचना छे. थोडां परिमार्जनयोग्य स्थान छ : अशुद्ध शुद्ध नीचेथी ६ स्वापक्षीया स्वारथिया नीचेथी ७ छन्न नीचेथी ५ फूटइ फूटइ (?ण) नीचेथी ५ पडइ पडइ (?ण) उपरथी २ वाउ आंगण वाउ आंगणउ बुहारइ छत्त ओछुहारइ
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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