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अनुसन्धान-७६
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चालि- चित्त अंतर जिणसुं वेध्यउं अपयशथी मन नवि खेध्यउ
वीसरइ किम ते प्राणनाथ जीवीई मरीई तिण साथि...६५ दूहा- वज्र सरीखा रे हिआ दुख तणो करंड
बीछडतां सज्जण थकी किम न हूउ सतखंड... ६६ चालि- सतखंड हूउ नही केम पूरउ राखी न सक्यो प्रेम
रहीनई फल केहलाआ फटि रे फटि पथ्थरहीआ... ६६ दूहा- प्रीउ चाल्यो परदेसडिं धणि मेल्ही निराधार
कह्यो कसी परि जीवीइं है है सरजणहार. चालि- है है सरजणहार अबलाने कवण आधार
घटरी वेदन कुण जाणइ जसु विचइ सो पिछाणे... दूहा- चित्तविलूधा वल्लहा सहियो प्रेम न जाय
पंजर मांहि पलेवणुं केही परि उल्हाई... चालि- उल्लवीजई किसी परि दाह विण मिलीयां तो विण नाह।
मोरउ जीव घणु अपराधी तो मई अह अवस्था लाधी. ७० दूहा- काया कोमल वेलडी विण सिची कमलाय
सीचि सनेही प्रीतिमां जिम नवपल्लव थाई... चालि- नवपल्लव काया थाई विरहानल दूरि पलाई
सुख सेती सेज रमिजई मानव भव लाहउ लीजई.. दूहा- तन सरोवर प्रीति जल यौवन लहरी जाय
झील सनेही हंसला जा सई कालि सुकाय... चालि– कालि सूकी सरोवर जास्यई अते जीव घणुं पछतासई
रहिसई मनषाहि अधूरी कुण करसइ आस्या पूरी. ७२ दूहा- वहतो मो मन वल्लहा मोटो हरख पडूर
दरसणरउ सांसउ पडो मिलणउ रहिउं दूरि...... चालि- रह्यो मिलणो दूरि सनेही कही अवगुण दाखो केहा ।
पिसुणांरई कहीई न य(प)तीजई जू न साच तिहां शिर दीजई. ७४ दूहा- वल्लभ गयुं विदेसडई काया रही यम झूरि सरज्यां लहीई आपणां जे वहि लिख्या अंकूर...
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