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________________ ९७ जान्युआरी- २०१९ अंजनासुन्दरी पवनंजय रास (खण्ड-२) । - सं. अनिला दलाल [अनुसन्धान-७५मां आ कृतिनो प्रथम खण्ड प्रगट थयो छे. अहीं तेनो द्वितीय खण्ड प्रगट करवामां आवे छे.] आदि सकति पय अणुसरी आणी हर्ष उमेद भवियण हित कारण भणी भणिसु कथा रसभेद. १ कवि चतुराई नित नवि नव नव कथा कल्लोल सांभळतां छतां चतुरां मनो(ने) आवइ अधिक कल्लोल. २ तिणि कारणि वड कवीयणे(णो) ग्रहज्यो गुण निज हाथ वाची जन संभलावयो सरलपणइ मनि साथि. ३ कवि सायर सरिखा कह्या गुणजल भरीया होइं पणि तटिनीजल आवतउ कदी न वर्जई कोय. कविनई गुण ग्रहीयां थकां अधिकी उपम थाई गजमोती गुण वेधीइ युवती कांठि धराय. संपतिनइ संयोग जे लहीइ दत्तथी सोइ कांने सांभळतां थकां गरथ न लागइ कोय. ६ पवनंजय अंजना तणो बीजो खण्ड उदार अकमनो कवीयण कहई सांभलिज्यो नरनारि. ढाल - प्रथम, मांनां दरजणनी राग – धन्यासी तिणि अवसरि लंका धणी रे राणो रावण नामि तेज प्रतापइं आकरो प्रगटी महिमंडल मांम रे... ८ लंकानो राजा करइ रे रण कोडि दिवाजा अभिमांनी रे राय जगत शिरइ अभिमानी रे... ९ लोक अवस्था आणता रे चूकवता चित्त फेरि ते ग्रह राणइ रावणइ पाय बाधी कीधा जेर रे... १० कृध्म(ष्ण) सवालाख दीवटी रे प्रगट करइ तजी रीस सोम सिघासण मांडिनई वर चामर ढालई सीस रे... ११ ॐ अw , कि दिवाजा
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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