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________________ सप्टेम्बर २०१८ छतइ, माता-पितादिक दीक्षा मूकीवादिक उपसर्ग करतां हुइ । अथवा अनेरोई काई जिवारइं उपसर्ग जाणइ तिवारइ न जिमवउं ३ | तथा जिवारइ प्रथम वृष्टि अथवा अतिवृष्टि हुइ तिवारइं एकेंद्रियादिक सूक्ष्म जीव घणा ऊपजई, तेह भणी महात्माइ ते जीवदयानिमित्त न जिमइ । उपवास करइ ४। तथा छट्ट-अट्टमादिक तप करवा भणी न जिमई ५। तथा छेहिलइ समइ सरीर वोसिरावानइ अर्थिअणसण लेवा भणी महात्मा न जिमई । जेह भणी छेहली वेलाई सविहुं जीवे आपणी शक्तिनइ मानई आहारनउ मोह छांडिवउ ६ । एहे कारणे महात्माए न जिमवउं । एतलइ पांचमउ कारणदोष वखाणिउ ॥९७॥ ७९ इतिविहेसणदोसा लेसेण जहागमं मए भणिआ । सु गुरु' लहु विसेसो सेसं च मुणिज्ज सुत्ताओ ॥ ९८ ॥ इय ति० ॥ इम त्रिहुं प्रकारइ एषणा - गवेषण - १, ग्रहणेषणा - २, ग्रासेषणा३ रूप एषणा । आहारनी सुद्धि आश्री ४७ दोष जहागमं - जिम सिद्धांतमाहि कहिया छइ तीणई मेलइं भणिया कहीइ बोल्या । हिव ए सतितालीस दोषमांहि केतलाएक गुरुया - १ -भारी छ । केतलाएक लघु-हलूया । केतलाएक गुरुलघु हलूआ । केतलाएक गुरु लहु- कांई गुरु कांई लघु । इस्या विशेष अनई थांकतां बीजाइ विशेष, अनइ वाचा थिकउ बीजाइ नाम भांगादिकनी विचारणा प्रमुख विशेष सिद्धांतमाहि थकउ आपहिणी विचारवी । विस्तर भणी ते सूक्ष्म दोष कहीता नथी इस्युं जाणिवउ ॥९८॥ सोहंतो अ इमे तह जइज्ज सव्वत्थ पणगहाणीए । उस्सग्गऽववायविऊ जह चरणगुणा न हायंति ॥ ९९ ॥ सोहंतो ० ॥ ए सतितालीस आहारना दोष सोधतउ हूंत महात्मा तिम जया करइ, जि को सदोष आहार लिइ तेहुई सिद्धांतमाहि पंचम (क) पंचक इस्य नामिदं प्रायश्चित्त तप विशेष कहिउ छइं, तेहनी हाणि । जिम राजा अपसंधि कीधउं दंड करइ | तिम रायना दंड द्रव्यनी परिइं ते तप प्रायश्चित्त माटइ जाइ । तेह भणी तेहनी हाणि करी सर्वत्र क्षेत्र काल आश्री तिम जयणा करइ, सावधान थाइ, जिम चारित्रना गुण हीणा न थाइं । जिम चारित्रना गुण वाधइ तिम महात्माइ जया करवी ॥ ९९ ॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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