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अनुसन्धान-७५(२)
अहवा० ॥ अथवा ए आधाकर्म दोष अहं(ह)कर्म । आहारना जिमणहार महात्माहुइ चारित्र थकउ हेठउ करइ-चूकवइ, नरकि घालइ । तेह भणी आधाकर्महुइ 'अधःकर्मु' इसिउं बीजउ नाम जाणिवउं । अथवा चारित्ररूपीआ आत्माहुइ हणइविणासइ, तेह भणी आधाकर्महुइ त्री 'आत्मघ्न' इसिउं नाम जाणिवउ । एतलइ अधःकर्म अनइ आत्मघ्न बि नाम वखाण्यां ॥६॥ हिव चउथउ आत्मकर्म नाम वखाणइ छइ -
अट्ठवि कम्माइ अहे बंधड़ पकरेइ चिणइ उवचिणई।
कम्मिअ भोई साहू जं भणि भगवई[इ] फुडं ॥७॥
अट्ठवि० ॥ तथा आधाकर्मनो लेणहार महात्मा, आठइ कर्म, अहे-हेठानीचां नरकमाहि बंधाइ । अनइ पकरेइ - आठ कर्मनी उत्तरप्रकृति बांधइ । अनइ चिणइ - स्थितिं करी पुष्टा करइ । तथा उवचिणइ - आठ कर्म प्रदेशि करी वधारइ। इम आधाकर्मनउ भोगवणहार महात्मा आठ कर्म वधारइ, तेह भणी आधाकर्महुइ चउथउं आत्मकर्म इस्यूं नाम । एह भणी ए आधाकर्म आश्री भगवतीइं अंगमाहि एह ज वात स्फुट-प्रकट कही छइ, ते जाणवी ॥७॥
हिव ए आधाकर्म दोष गाढउ-भारी, एह भणी नवे द्वारे व्यक्ति वखाणइ छइ -
तं पुण जं १ जस्स २ जहा ३ जारिस ४ मसणे अतस्स जे दोसा ५।
दाणे ६ अ जहा पुच्छा ७ छलणा ८ सुद्धी अ ९ तह वुच्छं ॥८॥ १. तत्सूत्रम् - आहाकम्मन्नं भुंजमाणे समणे निग्गंथे कि बंधइ किं पकरेइ किं चिणइ
किं उवचिणइ? । गो० आहाकम्मन्नं भुंजमाणे आउवज्जाउ सत्त कम्मपगडीओ सिढिल-बंधणबद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरेति । हुस्वकालठिईयाउ दीहकालठिईयाओ पकरेति । मंदाणुभावाउ तिव्वणुभावाउ पकरेंति । अप्पपएसग्गाओ बहुपएसाओ करेति । आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ सिय नो बंधइ । असायवेयणिज्जं च कम्मं भुज्जो २ उवचिणति । अणाइयं च णं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टइ । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति? । आहाकम्मन्नं भुंजमाणे जाव परियट्टइ ? गोयमा ! आहाकम्मे भुंजमाणे आयाए धम्मं अइक्कममाणे पुढविकायं नावकंखइ । जेसिपि य णं जीवाणं सरीराइं आहारमाहरेति ते वि जीवे नावकंखति । से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति आहाकम्मं भुंजमाणे जाव अणुपरियट्टेइत्ति ।।