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अनुसन्धान-७५(२
बहुत्तरि कला वणिग् कला, वेश्याकला ७४, जूआरी कला ७५, रस्य(स?)वणिक् ॥४०॥
अथ पिशाचः - सागरवत् उत्कटदंष्ट्राकरालः, ज्वालाजाल (ला)कुल, अट्टहास करतउ, फोकारव मूकउ, किलकिलारव विस्तारतउ, चर्मपरीधान, यमजिह्वासमान, हाथ काती ॥४१॥
राजकुलिका: - युवराज, कुमार, राजेश्वर, सामंत, महासामंत, श्रीकरण, वइकरणा, कुमार करणिक, धर्माधि०, अंतःपुर क०, रसवती कo, जीणशाल क०, श्वानपाल क० सुवर्णधारणि क(क०) आखंडल क; कोट क; ईट क; आराम क०, खड क० ॥४२॥
रोगवर्णनं - खास, श्वास, भगन्दर, गुल्मवात, गडवात, रक्तवात, कंपवात, भस्मवात, उष्णवात, अग्निवात, लोहवात, लूतावात, हर्षावात, आमवात, शोफवात, विगंचिवात, शाकिनीवात, रक्तपित्त, षाठवात, राजकपित्तक, कृमिकोष्ठ, गलितकोष्ठ, कृष्ण मो(को?)ष्ट, षसरु कोष्ट, महोदरु, अतिसारु, कृच्छ्रविकार, उदरशूल, हृदयशूलु, कुक्षिशूल, स्कंधशूल, पृष्टिशूल, शिरशूल, शिरोरोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, दंतरोग, ओष्ठरोग, कपोलरोग, जिह्वारोग, कंठरोग, ग्रंथिरोग, अरोचकरोग, क्षयरोग ||४३||
आलानस्तंभ मोडिओ, निबिड शृंखला त्रोडी, कपाटसंपुट फोडी, आवास पाडतउ, आवास मारतउ, वृक्ष उन्मूलतउ, मूर्त्तिमंतउ कृतांत, मदपरवश, गजराज चालिउ ॥४४॥
प्रज्ञा बृहस्पतितणी, प्रतिज्ञा परशुराम र. (त.), मर्यादा समुद्र त०, स्थिरता मेरु त०, गुरुआई गगन र . ( त.), निर्मलता गगन त, क्षमा धरणी त., मान दुर्योधन त., सत्यु हरिश्चंद्र त., साहसु विक्रमादित्य [त.] ॥४५॥
प्र (प्रा) सादथरा: - खरशिर १, आडथरु २, जादूभउ ३, कणाली ४, गजपीठ ५, अश्वपीठ ६, सिंहपीठ ७, नरपीठ ८, कुंभउ ९, कलसउ १०, कवाजि ११, मांची १२, जंघा १३, उदढाइउ १४, भरणी [१५] प्रमुखाः || ४६ ॥
सुभट किया हुई ? - जींहं तणउं जाणीतउं कुल, स्वामी तणउं छलु, भालातणउं बलु, आवासि आचारु, थोडउं बोलई, निगर्व चालइं, षटदर्शन नमइ, वाकु रही गमइ, संग्राम दुर्धरु, परनारि सहोदरु, पागुडइ प्राण करइ, स्वामी -