________________
सप्टेम्बर
२०१८
मुनिश्री वृद्धिचन्द्रजी कृत ढुंढक चर्चा
३१५
सं. शी.
आ रचनाना कर्ता मुनि वृद्धिचन्द्रजी मूळे पंजाबना रामनगरना वतनी हता, नामे कृपाराम, धर्मे जैन अने वणिक् । तेमणे दिल्हीमां मुनि बूटेरायजी पासे स्थानकवासी जैन दीक्षा लीधेली । आ जैन सम्प्रदाय मूर्ति अने मूर्तिपूजाना विरोधमांथी ४-५ सैका अगाऊ उद्भवेलो सम्प्रदाय छे। ते वर्गना साधुओ मोढे मुखवस्त्र बांधी राखे छे । पोताना आवा मतने अनुकूल होय एटलां ज आगमोने तेओ आगम तरीके स्वीकारे छे, शेष ग्रन्थोने नकारे छे । ते लोको 'बावीस सम्प्रदाय' तरीके ओळखाय छे ।
कालक्रमे आगमो अने शास्त्रोना बारीक अवगाहनथी आ गुरु-शिष्यने प्रतीति थई के मूर्ति-पूजानो निषेध तथा मुखवस्त्र बांधवुं - बन्ने बाबतो अशास्त्रीय छे, अने मूळ जैन धर्मना मार्गथी विरुद्ध छे । मूर्ति-पूजा शास्त्र सम्मत होवानो निश्चय थतां ज तेमणे स्थानक-मार्गनो त्याग कर्यो, अने कालक्रमे तपागच्छनी सुविहित संवेगमार्गनी सामाचारी अपनावी लीधी। आ वीसमी सदीना आरम्भे घटेली ऐतिहासिक घटना छे ।
आ पछी चालेला वाद-विवादो अने खण्डन - मण्डननी प्रक्रियामां मूर्तिनिषेधको ने तेमना मतनी असत्यता जणावतो एक चर्चाग्रन्थ श्रीवृद्धिचन्द्रजीए लख्यो हतो, अत्रे सम्पादित करवामां आव्यो छे । आ ग्रन्थ तेमणे पंजाबनी खडी हिन्दी बोलीमां लख्यो छे, अने सं. १९०९मां ते लख्यो छे । सम्भवतः ए अरसामां ज तेमणे धर्म-क्रान्तिनो झंडो लहेरावेलो |
चर्चा अत्यन्त रोचक छे अने स्तरीय छे। छाछरी वातो के भाषा नथी, शास्त्राधारित दलीलो तथा प्रश्नो ज छे । हा, विरोधीओनी जाली दलीलो बदल तेमने आडे हाथे जरूर लीधा छे । एकबे वातो जोईए ।
१. तेओ विरोधीओने पूछे छे : 'तमने एवं ते कयुं विशिष्ट ज्ञान थयुं छे के तमे ३२ सूत्रने साचां मानो अने बाकीनां सूत्रोने जूठां गणो ?।'
जवाब : 'अमारी श्रद्धाने अनुरूप वातो ३२मां ज छे, एटले एटलांने ज मानीए छीए' ।