________________
२८१
सप्टेम्बर - २०१८ विनही मांगै वीर सबनको देत है, तूं काहेको वीर उनीसों कहत है देह वचन बाजिंद बूरो हे लोय रे, आ मांणस क्रोध भरहै तनही तोय रे ॥७१॥ जो जीय है कछु ग्यांन पकर रहें मनको, निपट हलको होई जा चित्त जिण जनकों प्रीति सहित बाजिंद रांम जो बोलि है, रोटी लीयां हाथ नाथ संग डोली है ॥७२।। रजक न राखै राम सबनको पूरहै, तू काहेको बाजिंद वृथा कहं जूर है जनम सफल कर लेह गोविंदही गायक, जा को ता को पास रहैगो आयकै ॥७३।। हाथ न छै तब पाय चल्या कहां जात है, रजक आपणै वीर रेंन दिन खात है रोटीको बाजिंद कहां तूं रोवही, अजगरको दीयै नेन न कोउ जोवही ॥७४॥ खोली खजिनो देह अपनो लोय रे, बूरे भले बाजिंद गिणै नहीं कोय रे साहिबके सब समान हंस कहा बगके, लागी ओकही चाव जीव सब जगके ॥७५।। काम कलपना वीर हिरदा तें धोईओ, गहिकै पांच पचीस सुख कर सोई जल थळ महिके जीव स्याह कहा श्वेत हे, चांच समाने चूग सबनको देत हे ॥७६।।
॥ साधको अंग ॥ ओक रांमको नाम लीजिये नित्त रे, दूजे जन बाजिंद चढे नहीं चित्त रे बैठे धोवा हाथ आपने जीवकों, दास आय तजी आंन भजै क्यों न पीवकों ।।७७।। कहा वरनूं बाजिंद वडाई जिनकी, काम कलपना दूर गई हे मनकी अष्ट सिद्धि नव निधि फिरत है साथ रे, दूनिया रंग पतंग गहै को हाथ रे ॥७८|| जगके जे ते जीव सो निजर न आवही, विना आपनै ईश शिशको नांवई सा धरहे शिर टेक प्रभूके पैरसूं, दास पास दीवान बंधे कयुं ओरसूं ॥७९॥ अविनाशीकी ओट रहैत रेंन दिनमें, विना प्रभूके पाय जाय नहीं ईक खिनमें जगके जे ते जीव जरत है धूपमें, दीपक ले दोउ हाथ परत है कूपमें ।।८०॥ साध सो साहिब पास उ नितें दूर है, हंस बगां ते वीर मिलै नहीं मर रै जीव अपनो बाजिंद गोद ले मेलिये, सोवत सिंघ जगाय ससा ज्युं खेलीये ॥८१।। पूंन्य कोद कों जाय पाप तें भग्गहै, कउआ कुं मति नसाय नाथ तें लग्ग है कहां वरनूं बाजिंद वडे अण वंसके, मान सरोवर तीर चुगत हे हंसके ॥८२।। भगत जुगतमें वीर जाणीयै हैन रे, सास सरद मुख जरद निरमल नेन रे दूरमति गई अब दूर निकट नहीं आवही, सा घर हे मुख मोंडके गोविंद गावही ॥८३॥