SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ अनुसन्धान- ७५ ( २ ) १२१ १२२ रे १२६ ऊभवीयो सिर ऊपरि रे मेघाडंबर छत्रो रे बिहु पासई चमर ढलई रे आगलि नाचई पात्रो रे कलश जवारा सिर धरी रे पदमनी आगलि चालई रे याचक जय जय उचरई माता हीयडई माल्हइ रे सरणाईआं सोहला रे मधुर मधुर सादई आलापई रे राई रंज्यउ कुंअरू रे मन मानी मोज आपई रे. गखमाहि गोरडी रे मन माहि करई विचारो रे मांग्यो देजे माधवा रे परभवि अ भरतारो रे. ईणि परि आवई मलपति रे चावल तिलक वधायो सासू लूंण ऊतारीयो रे धवल मंगल करी गायो रे. पाय तलि सराव भंजाविआ रे लज्जा भागी तेहो रे माय बाप सहु जण पेखतां रे स्त्रीसुं धरवड नेहो रे. वर जाई वटो माहरइ रे ततक्षण कुमरी आवई रे सहिर सरिसी परिवरी रे गजगति गेलि हरावई रे वर पासई कन्या ठवी रे वरमाला पहिरावई रे वरकन्या करि एकठा रे वेदी हाथ मेलावई रे . कर मेल्हामण कुमरनई रे दीधा अर्थ भंडारो रे हाथी घोडा अति घणा रे दासीरा परिवारो रे. चउरीमाहि बेसारीया रे वर कन्या मनरंगो रे बिहूर बिहडा बाधीया रे ते बांधी प्रीति अभंगो रे चोई फेरई कामिनी रे वरनई वांसइ थापई रे चोथो मंगल वरती रे पांचांरी साखी आपई रे ढाल सोहलारी पांचमी रे परण्या पवन कुमारो रे पुण्य थकी कवियण कहि रे लहीई लील उदारो रे. १३२ दू ईम वीवाह कीयो भलो खरच्या द्रव्य अनेक जाचक जण संतोषीया दांन - मांन सुविवेक... हसी रमी सहु को तिहां जांनीवांसई जाई निद्राभर सूता सहू आणंद हरख अपार. १२३ १२४ १२५ १२७ १२८ १२९ १३० १३१ १३३ १३४
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy