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________________ २४९ सप्टेम्बर - २०१८ तुम्ह नवयौवन दीसउ चंगा इणि अवसरि किम संजम रंगा गृह सुख छारि कवण सुख पाया किणि धूरति तुम्ह धंधइ लाया... २६ तुम्हसे नर घरघर किम हांढइ तुम्ह सिरि सेहर सोहइ मांढई अइसे महल भोगवहु आई हमस्युं मुनिवर करहु सगाई..... तुम्ह दीसइ सुन्दर कोमल देहा इणि संजमस्युं तिजहु सनेहा योग कठिन जिह५ रमणि वियोगा यौवन देही भोगवि भोगा..... हम अग्गहिइ२६ करि चउमासा यहु कुटुम्ब प्रभु पूरहु आसा करहु कंत हमस्यु गृहवासा सनमुख देखहु त्यजहु उदासा..... मुनिवर नजरि स्यु३८ मेली दूध माहि मांगें साकर भेली हावभाव करि चरणे लागी लाज कांणि मनकी सब भागी..... आविसु सहीगुरु पूछइ२९ जाइ रचउ विविध तुम्ह लोग सजाइ देइ बोल मुनीस सिधारे सुगुरु वाट जोवइ तिण वारे..... वाट जोवत वछ भलइ पधारे विहरति आओ कांइअ वारे रोसभरी जंपइ मुनिराया इणि भिख्खा हम बहुत सताया..... लेहु पात्र आपणा उपगरणा भोग विना हम जाइ न रहणा नटुवणिस्युं हम प्रीति वणाइ द्यउ आदेस मुझ छन [न] सुहाइ..... ३३ गुरु सिरि धूणि कहइ बछ मेरा हाहा वचन भला नहु तेरा संजम लेइ किम खंडीजइ सील रयण कहि किम छंडीजइ...... वर छंडीजइ प्राण हुतासा ४२चारित छोरि म करि गृहवासा ४२जीपउ मदनभट पवन अभ्यासा छंडीजइ प्रभु विषइ-पिपासा..... ३५ ३३. धरि सुख, ३४. चेटक, ३५. तिहा, ३६. आग्रह ईहा, ३७. तुम्ह, ३८. निजर निजर, ३९. पूर्छ, ४०. हम कछु न सुहाइ, ४१. छांडीजे, ४२. पीछइ होवै बहु पछतावा / रतनभरी बूडति जिम नावा काया सोस करहु उपवासा / करि दृढ कछलेहु वनवासा. आ पछी 'धमाल'मांनी बे पंक्तिओ अहीं आवे छे : जीपउ मदनभट पवन अभ्यासा, छंडीजइ मुनि विषय पिपासा.
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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