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जे आज्ञा जिनवर तणी रे, भावपूजा ते जाणि
तेनुं कारण भक्ति अछइ रे, भवि संशय मन नांणि ६ जि० अचिन्त चिंतामणि सेवतां रे, हुइ फल वंछित संग तिम जिनवर तुझ भक्तिथी रे, उल्लसइ अनुभव रंग ७ जि० कल्पवृक्षनी छांहडी रे, करइ जगमें उपगार
तिम जिनराज सेवा थकी रे, प्रांणी लहइ निस्तार सफल सेवा तिणि ताहरी रे, जिणि तुझ शुद्ध स्वभाव श्री भावप्रभसूरी कहइ रे, प्रगट अचिंत्य प्रभाव
दूहा
इम भरतें स्तवना करी, जिननी निश्चल चित्त सयल मूरतिनइ आगलिं, करइ उचित स्तुति प्रीति संघपति भरत नरेसरू, पोहता निज आवास
ढाल
अनुसन्धान- ७५ (२)
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१६ मी
चक्कवइ पदवी भोगवइ, पूरण पुन्य प्रकाश आरीशाना भुवनमें, निरमल पांमइ नाण
अनंत सुख लह (हि) अनुक्रमई, पांमी अविचल ठाण ३
कपूर हुइ अति उजलूं ए देशी ।
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८ जि०
धन धन शत्रुंजइ गिरिवरू रे, जिहां श्री आदि जिणेश ए सम तीरथ को नही रे, टालइ करम क्लेश सुगुणनर सेवो आदि जिणंद
९ जि०
१
मरुदेवीनो नंद, मुख पुंनिमनो चंद सु० टेक छट्ठ वहीइ गिरिराजनी रे, करीइ नवाणु यात्र तीरथ थानक फरसीइ रे, हुइ निज निरमल गात्र ए गिरिवरनी यातरा रे, मानवनई अवतार द्रव्यपूजा भावपूजाथी रे, निश्चय लहइ निस्तार पुनम पक्ष पटोरू रे, श्री विद्याप्रभ सुरिंद श्री ललितप्रभ तेहनें रे, पाटें हूया मुणिंद
२ सु०
३ सु०
४ सु०