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________________ सप्टेम्बर २०१८ कुल मर्याद लोपइ नही, श्री जिनधर्म आराधई रे श्रीभावप्रभसूरि कहइ, धन शिवमारग साधइ रे दूहा इंद्राणी रांणी सहू, सुणी प्रसंसइ सार सुकडि सुकडि एहवी जगें, कोइ नही सुविचार १ पत्थर साथि लडावतां, स्युं सुकडिनें स्वामि इम स्त्री चक्कवइनें कहइ, ऊठि करो निज काम छांनो न रहइ राक्षसो, वारो तो स्युं थाय जोतां सत्य सुकड कहइ, पहाणें किस्युं सधाय ३ डिन मुंकइ कूबडो, ओरसीउ अगलंच १६ कु० पाछो बोलनें वालतो, न करइ ए खल खंच सुकडि पक्ष सहू थई, भली भलेरी नारि पुरुष प्रधान ओरीसडो, पणि किम पामइ हारि भरत कहइ भामिनि सुणो, म करो केहनी पक्ष कारणवादी पणि भलो, छइ ओरीसो दक्ष ललकार्यो जिम सीहलो, फोरइ ततखिण फाल तिम नरपति वयणां सुणी, बोल्यो गिरिवर बाल ७ गर्व कर रे गहिलडी, पांमी गंध पसत्थ जो जिन अंगे नवि चढी, तु तुंझ जनम अकयत्थ ८ तिणि हुं कारण सत्य छं, स्युं इम कुद्यइ थाय हलूई अति उछांछली, हिणी नारि कहाय सुकडि ते निजनामनां, संभलाव्या परयाय ईम माहीरी पणि नामना, बहु परयाय कहाय ओरसीउ ए नांमनों, जे छइ अर्थ विशेस कहितां पार न पांमइ, पणि कहुं कांईक लेश ढाल १२ मी - सुणि सुगुण सनेही रे साहिबा । ए देशी ओरसीउ तेहनें भाखीइ, जेह पुरुस मांहि रेह रे सुपुरुसनी चालि चालतो, विनयी निरदूषण देह रे ४ ५ ६ ९ ११ २१७ १ ओ० टेक
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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