________________
२०८
अनुसन्धान-७५(२)
यतः गाहा -
एक्कु कुडुल्ली पञ्चहिँ रुद्धी
तहँ पञ्चहँ वि जुअंजुअ बुद्धी। बहिणु एतं घरु कहि किंव नन्दउ
जेत्थु कुटुम्बउँ अप्पण-छन्दउं
पूर्वढाल -
मुझस्युं मेल करइ तव ताहरइ, मेल सुगंधिक साथें रे भरी कचोली परिमल रसस्युं, जिन पूजइ नृप हाथें रे १६ ओ० संप वडो संसारमें कहीइ, संपें सवि सुख लहीइ रे श्रीभावप्रभसूरी कहइ इणिपरि, सुकडि सुगणि सद्दहीइ रे १७ ओ०
दहा
به
سه
वयण सुणी नगसुत तणां, बोली सुकडी साख तुं लिंबोली सारिखो, अझे तो पाकी दाख शिला तुमारी मातृका, गंडशैल तुह्म तात लोढी भगिनी जांणीइ, ए तुह्म कुंटंब विख्यात जेह हठीलोह तुझ तणो, लघुभाई मगशेल पुष्करावृत्त पयोदनी, जिणें सही जलरेलि तो पणि ते हार्यो नही, उठ्यो अंगमरोडि, पुष्करावृत्त नासी गयो, हीणास्युं सी होडि ए उपनय सिद्धांतमां, जे श्रोता इणि ठाम उपदेशक जे तेहना, तेहनी न रहइ मांम तेहवी प्रकृति ताहरी, करइ हठीली वात कुल सारु कोमलपणुं, जीभ जणावइ जाति भासा प्रा(प्र)कृति भूलणी, उझरमइ अन्य गात्र नाम अवकर्षक सत्य ते, कहइ शब्दनां शास्त्र
ه
م
م
७