________________
सप्टेम्बर - २०१८
२०३ अह्म परिमल अबोटजो रे, तउ चडीइ जिन अंग मे० परिमल जो कुणइं भोगव्यो हो लाल, तउ पूजाइं भंग मे० ७ उ० अझने कुंआरी जो तुझे रे, जिननें भेटावो भूप मेरे साजन फल अतुल तुम्मनें हुइ हो लाल, द्रव्यपूजानुं अनूप मे० ८ उ० संगति अणमिलती जगें रे, वारइ तेह सुजाण मेरे रा० उचित संगति सेवता हो लाल, जगमें जसनी खाणि मे० ९ उ० यतः
दुहा
सज्जननई सज्जन मलइ, बाझइ रूडी प्रीति दुधमांहि मिसरी भली, मेंठी ए जगि रीति १ सज्जन नें दुरजन मिलइ, अवगुण सवि ढंकंत सोना उपरि काच जिम, धरइ पीरोजा कांति २ दुरजननें सज्जन मिलइ, गुण सघलो ही जाय पीतल उपरि माणिक्य जिम, काचगमे वेचाय ३ दुरजननें दुरजन मिलइ, कोइ न आवइ लाग
चम्मक पहाणतणी परें, साहमी ऊठइ आगि ४ पूर्वढाल -
घटइ नही जे वारता रे, ते किम कीजइ मंडाण मे० श्रीभावप्रभसूरि कहइ हो लाल, इणिपरि सुकडि वाणि मे० ९ (१०) उ०
दुहा सुणी ओरसीउ चिंतवइ, अहो गिरिराज सुपुत्र उत्तर ईहां जो नवि करूं, तो न रहइ घरसूत्र १ अणबोल्यां रहितां थकां, जाइ कुलनी माम अकर्मी बेटी होई, खोइ बाप, नाम उपायूँ गिरिवंशनें, हुं सुत छु समरत्थ किम ए सुकडि लाकडी, करइ मुझस्युं भारत्थ ३ श्री शत्रुजयगिरि वडो, सयल तीरथ शिरताज अकर्मी बेटो सुणी, ते पणि पामइ लाज