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अनुसन्धान-७५(२)
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दूहा इंद्र इंद्राणी अपच्छरा, किंनर नरनी कोडि चक्कवइ चंद्रमुखी सहू, सुणी रह्या कर जोडि सहू विमासइ चित्तमे, एतो मोटो वाद जोतां तो जुगतुं कहइ, सुकडि वात सवाद पडिछंदइ प्रासादनइ, अधिकुं जागइ जोर । बोली सुकडि बालिका, सुणो तजीनइ सोर
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ढाल - [५] जब लगें तुझ गुण सांभल्या रे
तब लगें लागो मोह मेरे साहिब - ए देसी रोहण द्रुम शाखा कहइ रे, सांभलज्यो सहू कोय मेरे साजन पांणी दूध पटंतरो हो लाल, राजहंसथी होइ मेरे साजन १ उत्तम संगति गाजीइ हो लाल, लाजीइ निचनइ संग मे० मिल्यां शोभा निज जातिमां हो लाल, अन्य जातिस्यो रंग मे० उ० टेक
ओरसीउ निज नामथी रे, जगमें पमाडइ भ्रांति मे० जूओ रूप रंग एहना हो लाल, काया नें वली कांति मे० २ उ० कपूर केसर आदि घणी रे, वस्तु सुगंध कुटुंब मे० ते पणि अग्गि रहिओ सुणइं हो लाल, कहइ जे चंदन कंब मे० ३ उ० नीच संगति करतां जगई रे, अंतइं हुइ दुखदाय मे० वायस हंसनी वारता हो लाल, जिम जगमें कहिवाय मे० ४ उ० यतः - नाहं काको महाराज, हंसोहं विमले जले
नीचसंगप्रसंगेन, मृत्युरेव न संशयः १ ओछानइ छांहीइ वस्यां रे, आवइ अंगें आल मे० अह्मे सुकडि सुकडि जसी हो लाल, भावीइ मनें भूपाल मे०५ उ० ओछाईओ ओछांतणो रे, दाय न आवइ देव मे० उठो आदि जिणंदने हो लाल, सुपर कीजइ सेव मे० ६ उ०