SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ अनुसन्धान-७५(२) छत्तीस० नवमी निर्जर भावना, तप ऊपर निज मन धारौ(धार) रे। दशमी लोकसरूपनी, बोधदुरलंभ इग्यारै रे ॥२२॥ जे निज आतम वसि करी, चालै जे गुरुनी शिक्ष्या रे। धरम आराधन भावना, धन धन जे पालै दिक्षा रे ॥२३॥ अरिहंत सिद्ध सूरीसरू, गुण छप्पन्न भेला होवे रे । गुण पचवीस पाठक तणा, जपमाली इण पर प्रोवे रे ॥२४॥ छत्तीस० छत्तीस० ढाल ३ (कृपानाथ मुझ वीनती अवधार एहनी) चवदै परब सीखवी जी, तेम इग्यारह अंग । सूत्र भणावै तिम भणै जी, ए पचवीस गुण चंग ॥२५॥ पाठकना ए गुण माला मांहि, नाम कहूं हिव तेहना जी। आणी अंग उछाहि, पाठकना ए० ॥आंकणी।। उत्पाद पूर्व आग्राहिणी जी, वीर्यप्रवाद वखांणि । अस्तिप्रवाद नै पांचमो जी, ग्यांनप्रवाद तूं जाणि ॥२६॥ पाठकना० सत्यप्रवाद छट्ठौ कह्यो जी, सातमो आत्मप्रवाद । करमप्रवाद ते आठमो जी, प्रत्याख्यान प्रवाद ॥२७॥ पाठकना० विद्याप्रवाद तथा वली जी, कल्याण नाम प्रवाद । प्राणवाय ते बारमो जी, क्रियाविशाल अनाद ॥२८॥ पाठकना ए० लोकबिंदुसार जाणवो जी, चवदमो पूरब एह । अंग इग्यारह हिव कहूं जी, नाम सुणौ धर नेह ॥२९॥ पाठकना ए० आचारांग प्रथम कहूं जी, सूयगडांग नैं ठाणांग। समवायांग नै भगवती जी, न्याता छट्ठो अंग ॥३०॥ पाठकना ए० उपवासग नैं अंतगडदिसा जी, अनुत्तरवाई एम । पण्हावागरणं तथा जी, विपाक सूत्र छै तेम ॥३१॥ पाठकना ए. सरवालै च्यारे मिली जी, इक्यासी गुण होइ । गुण सत्तावीस साधुना जी, अट्ठोत्तर सो होइ ॥३२॥ पाठकना ए०
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy