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सप्टेम्बर - २०१८
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लाख चोरासी घरना फेरा, पास प्रभु करो फोक, तुज वीण ते को टालें नहीं, प्रभु लाख मलें जो लोक ॥३॥ प्र० काल ते चक्र कोटिगमे कहीइं, तेहना सुर नर कोडि, तेणें न थाइं स्तुती ताहेरी, कहे छे कवी कर जोडि ॥४॥ प्र० घणुं स्यु कहुं प्रभु छो तमे केवली, जाणो मननी वात, तो पण नीजमती प्रभु गुणरागें, अमरतरु-अवदात ॥५॥ प्र० पास प्रभुनुं दरिसन दीठे, प्रगट्यो पुरव भव प्रेम, षटपद मोह्यो मालती गंधे, तुम मुख देखी हुं तेम ॥६॥ प्र० वामानंदन वंदता मुझने, उपनो आज आनंद, लाग्यो मोह ए वदन-कमलनो, जीम चकोरनें चंद ॥७॥ प्र० घणे दीवसें साजन मलीया, ऐ सुखनो नही पार, धन्य घडी दीन माहरो, जेम मलीयो प्राणाधार ॥८॥ प्र० अलगो न रहुं अधघडी अलवेसर, तुझथी वालेसर वेद, आठ करम अंतराय अरीनें, नाथजी नांखो नीखेद ॥९॥ प्र० दीन जाणीने दया करों साहेब, उतारो भवजलपार, आ संसार असारमाहे एक, अरीहंतनो आधार ॥१०॥ प्र० देव सवे में दीठा प्रभुजी, कोथी न सरीयो अरथ, नीरभय वंछीत सीवसुख आपें, तु साहेब समरथ ॥११॥ प्र० चरण कमलनी सेवना हुं, मांगु छु महाराय, ध्याउं देवगुरु ग्यांनने नवपद, अवर न आवे दाय ॥१२॥ प्र० बुध्य अकल मत्य सुख दुख सर्वे, करम प्रमाणि लहीइ, छोरु कछोरु ने मात पीता तमें, तम आगल अमे कहीइं ॥१३॥ प्र० तप गुण ग्यांन-क्रिया थकी होवें, समताई जस वीस्तार, पण मुरख नर समझें नहीं तें, धरे बहु अहंकार ॥१४॥ प्र० हंसनें वायस बग ठरावें, मुढ तें आप वखांणे, बाह्य अभ्यंतर अंध थईने, वात पोतानी तांणे ॥१५॥ प्र० गुण अवगुण सोनु के पीतल, समझें नही थाइ काजी, मुरख नीलज नीच अज्ञांनी, नींद्या करें जे झाजी ॥१६॥ प्र०