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________________ १८६ अनुसन्धान-७५(२) संवत् सत्तर अढारमा आवीया, पाठक कहीइं रे सीद्धरतन्न, प्रतीबोध्यां सहुने देई देसना, नरनारीना रे हरख्यां मन्न ॥४॥ भ० पटल गरासीया पगी महाजन आदें, सर्व संगातें रें द्रव्य मेलावें, वलती भुवन जोडें पौषधसाला, जयरत्नसूरी रे उद्धार करावें ॥५॥ भ० राज-वीरोध वसें वली सांभलो, संवत् सत्तर रे थयो सडताले, संघ सकल साथै सुखकारणे, प्रभुजी पोहोंता रे हेजे हरीयाले ॥६।। भ० त्यां पण भावें भजे प्रभु पासने, कपुर भणसाली रे ते कहेवायो, अदेसंघ वाघेलो मातरीयो सत्तर संग, प्रभुने पुज्याथी रे बहु सुख पायो ॥७॥ भ० त्रीस वरस वासें प्रभु त्यां वस्यां, बाबी महेंमदखां रे फरी खेडं वासें, नीपजाव्यु नवु देहरुं अपास्यरो, उदयरत्न वाचकें रे मन उल्लासें ।।८॥ भ० जांणीइं संवत् सत्तर पंचोत्तरे, श्रीपुज्य रंगे रे रह्या चोमासुं, प्रभु पधराव्या तेह समें सही, खेटकपुर लेई रे थान्यक खासुं ॥९॥ भ० सत्तर छ्यासीइं दानरतनसुरी, मातरगांमथी रे प्रभु पांच लाव्या, मुगट कुंडल करी ठाठ अतीघणो, भीडभंजननी रे पासे पधराव्या ॥१०॥ भ० मनना मनोरथ आज सफल फल्या, प्रभु गुण गातां रे चढती जगीस, दोषी दुसमन दुर टले सहुं, सास्वता सुख आपे रे जीन चोवीस ॥११॥ भ० दूहा भक्तिभावथी जे नमे, सुख पामे भरपुर, धरणीधर पदमावती, दुक्ख करे सहु दुर ॥१॥ अरज करे प्रभु आगले, आस्या पुरण थाइं, अविचल सुख वली ते लहे, जो मन राखे ठाई ॥२॥ ढाल-३ (भोला प्राणीडानी - ए देशी) मन्न घणे मलवा आव्यो हुं, भीडभंजन महाराज, तारो सेवक जाणी मुझने, साहेब गरीबनवाज ॥१॥ प्र० प्रभुनुं ध्यान धरुं सुभमती जीनजी आपो, चारीत्रथी चीत्त चुकें साहेब, प्रभुजी पंचम काल, रक्षा करो रीषीराज रुडी पेरे, तमे छो दीनदयाल ॥२॥ प्र०
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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