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सप्टेम्बर
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२०१८
मिथ्यात्वविरह - सम्यक्त्वकुलकम्
३४ कडीनी आ अज्ञातकर्तृक नानकडी कृतिमां पूर्वार्धमां मिथ्यात्वने लीधे उत्पन्न थता कुविकल्पोनुं वर्णन करीने तेने त्यजवानो उपदेश आपवामां आव्यो छे. त्यारबाद उत्तरार्धमां सम्यक्त्वने लीधे प्रगट थता गुणोनी प्रशंसा करवामां आवी छे. कृतिरचनानो मुख्य उद्देश 'धर्म'ना नामे थती जीव - विराधनात्मक दुष्प्रवृत्तिओने अटकावीने सद्गुणो केळववानी दिशामां प्रयत्न करवानो छे. कृति सरळ भाषामां सरस बोध आपी जाय छे.
सामान्य रीते 'कुलक' प्राकृतभाषामां ज रचातां होय छे. पण अहीं कर्ताओ गुर्जर भाषानी कृतिने पण 'कुलक' एवी संज्ञा आपी छे जे एक विशिष्ट वात जणाय छे. भाषा जोतां १६मी सदीनी आ रचना हशे एम अनुमान थाय छे. कर्तानुं नाम के संवत् के लेखनसंवत् एवं कशुं ज प्रतमां प्राप्त नथी. त्रीजी कडी वांचतां अखानो प्रसिद्ध छप्पो -
गुरु गुरु नाम धरावे सहू, गुरु के घेर बेटा ने हू 1
गुरुने घेर ढांढा ने ढोर, अखो कहे आपे वोळावियां ने आवे चोर"
सविहुं पापहं मूल मिथ्यात,
सं. - मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
ए अवश्य याद आवे . ते परथी आ कृति अखानी समकालीन होय एम बने. अखानी असर आना पर हशे ? के आनी असर अखा पर हशे ? नक्की करवुं मुश्केल छे.
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सयल पुण्य जे करइ उपघात ।
जीव मिथ्यातिइं भूला भमई,
१७७
तव फेरा नवि भाजनं किमहं ॥१॥
जेहं मनि जिणवर - आण न फुरई,
धर्म- बुद्धि नइ पाप ज करइ ।
ऊखल - आंबिलि-चूल्हि - नीसाहि, तेहू पूजई देव-नीठाहि ॥२॥