SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ अनुसन्धान- ७५ (२) चरण सामायक सिचीइं ध०, छेदोपस्थापन आय ध० । इहां परिहारविशुद्धि दो ध०, चोथुं सूहमसंपराय ध० ॥ ९ ॥ यथाख्यात तिम पांचमुं ध०, एह संवर परकार ध० । जेथी आश्रव रोकिइं ध०, तेह संवर निरधार ध० ||१०|| एह संवरने सेवता ध०, टालि कर्म आताप ध० । जीव साधु नंत सिव गया ध०, पुजो केसरसुं ते आप ध० ||११|| ह्रीँश्रीँ० पूर्ववत् ॥ इति तृतीयतत्त्वत्रिकें प्रथम पूजा ॥७॥ * दूहा कर्म निरजरे निरजरा, जेहना द्वादश रेह । एह तरुइं कुसुम जिसा, जास सुगंध अछेह ॥१॥ अथ ढालः [अनि हां रे वाहलो वसें विमलाचलें रे - ए देशी ॥] भवियां रे निरजरा ते तप सेवीइं रे, जेहना छे बारह भेद । षटविध बाहिर षटभ्यंतर बली रे, सामान्यथी एह संवेद । निरजरा ते तप सेवीइं रे ॥१॥ ए आंकणी ॥ भवियां रे अणसण दोय अणोदरि रे, व्रतीसंखेवण रसत्याग । कायकिलेस करणादि गोपना रे, एह बाह्य तप करो याग | नि० ॥२॥ भवियां रे अपराध शुद्धि विनय करो रे, वेयावच सज्झाय झांण । उत्सर्ग एह अभ्यंतरतणा रे, धूरथी कहुं भेद विनाण | नि० ||३|| भवियां रे अपराधशुद्धि दशविध कही रे, विनयना सात प्रकार । नाण दंसण चरण जोगनो रे, सातमो तिम लोकोपचार | नि० ||४|| भवियां रे नांणनो पंच परकारसुं रे, दरसननो दुविह जोय । चरण त्रिविध विनय आदरो रे, मनादि जोगें दोय दोय | नि० ॥५॥ भवियां रे सातमो सात विनय करि रे, सेवो वेयावच दश भेद । पंचविधानें सज्झाय सेवीइं रे, दोय ध्यान वारी दो विभेद | नि० ||६|| T
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy