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________________ १४६ शील राणी कलावती, कर नवपलव थाइ रे । शीलइ द्रुपदी गहगही, लेइ संयम सुरगति जाइ रे || गी० ॥४॥ इणि परि शीअल तणा गुण गातां, मुज रसना पावन थाइ रे । जे नर-नारी सांभलइ, तस दुरगति दूरि पलाइ रे ॥ गी०॥५॥ श्रीविजयराजसूरीस्वरू, तपगछपति गुणखांणि रे । दयाविजय विबुध तणो, सुखविजय वदि शुभ वांणि रे ॥ गी० ॥६॥ करूर = क्रूर गीतरथ = गीतार्थ - शास्त्रज्ञ साधु पिंडग = पंडक नपुंसक मांननी = मानिनी विस वश रलिं = रळवामां पूरी तूणि = ? ।। इति श्रीनववाडि भावभास संपूर्णम् : श्री जमालपुर लिखीतं ॥ * शब्दकोश अनुसन्धान-७५ (२) स्याकनइं = शाकने कोहला = कोळं कुडखला = कुड्य - दीवाल, खला - खळं (?) वसुत = वस्तु (?) अही-डस = सर्पदंश सुरति = सुरत- क्रीडा अणोदरी = ऊनोदरी व्रत * * *
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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