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सप्टेम्बर
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२०१८
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सूधा अणगारजीनइं सीखडी रे, सीखडली मुगति दातार भा०मी० विधिसुं वइरागी पालजो रे, जिम पामो भवथी पार ॥ भा०मी० ॥२॥ श्रीपुरनयरमांहि वसई रे, वीवहारी कांमराज भा०मी०
मी - लाख तेण संग्रह्या रे, वोहर्यां वणीजनई काज ॥ भा०मी० ॥३॥ मूक्यां चूला पाछलि रे, तापइं गलीया लाख नई मीण भा०मी० आव्या ग्राहग लेवा भणी रे, वसुत देखी भाखइ दीण ॥ भा०मी० ||४|| एणि दृष्टांति जाणजो रे, न सुणवा काम विभाव भा०मी० भगवंतीइं इम भाखीउ रे, तुम्हे रहिजो सदा समभाव भा०मी० ॥५॥ रंग विलास विनोदसु रे, म करो मन अभिलाष भा०मी० सुखविजय कहि भविजना रे, ज्ञांन अमृत रस चाखि भा०मी० ||६|| इति पांचमी वाडि ॥५॥
ढाल - थाहरां मोहला उपरि मेह झरुंषई वीजली हो लाल ए देशी ॥ छठी वाडि विचार कि श्रमण सोहामणा हो लाल कि श्रव (म) ण०, पुरव नारीभोग कि समर म प्रांणी आपणा हो लाल कि स० । एक दिन मूली का कि जाइ बिं जणा हो लाल कि जाइ बिं० तिहां सूको देखी वृख कि पाडइ इंधणा हो लाल कि पाडइं० ॥१॥ तिहां पूठि विभाग एक नर तेहनइ अही डसइ हो लाल कि तेह०
जो देखता कि घरवासो वसई हो लाल कि घ० ॥२॥
इणि परिं करतां कांम कि वरस दिन नीगमइ हो लाल कि वर० एक दिन आव्यां तांम कि बिं जणा तिणइ वनि हो लाल कि ति० ॥३॥ बीजइ संभारी वात कि अही - डस - केरडी हो लाल कि अ० । संका था तांम कि काया तिहां पडी हो लाल कि का० ॥४॥ इणि परि सुरति संभार कि प्राणी बापडो हो लाल कि प्रा० । भांजि व्रतनी वाडि कि दुरगति कां पडो हो लाल कि दु० ॥५॥ मयणरायनिं काज कि जापो प्रांणी तुम्हो हो लाल कि जा० । सुखविजय कहिं एम कि शील साथि रमो हो लाल कि शी० ॥६॥ ॥ इति षष्टमी वाडि ॥६॥