SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० अनुसन्धान-७५(२) नववाडनो रास ढाल - करि शृंगार कोश्या कहि नागर नंदन - ए देशी ॥ वीर जिणेसर इम कहिं संयमना वासी, साधु सकल उपगार रे, सं० चोथु व्रत विधिसुं धरो सं०, पालो निरतीचार रे । सं० ॥१॥ पांच भावन नव वाडि छई सं०, अंग आगममां साखि रे, सं० ते जोइ चित्त राखजो सं०, समता रंग रस चाखि रे । सं० ॥२॥ जे चारित्रनो खप करइ सं०, नर ती वाडि टालइ दूरि रे सं० देखत दीवी हाथई करी सं०, कुण कूप झंपावई करूर रे । सं० ॥३॥ सूत्र अर्थ जाणइ बहु सं०, विनय विचारना ठाम रे, सं० गीतारथ गुणवंत जे सं०, कुशीलपणइं खोइ नाम रे । सं० ॥४॥ भवियण मन ठामि करी सं०, राखो शीयल सदा सुख खाणि रे, सं० वाडि विशेषज्ञ जूजूइ सं०, ब्रह्मचर्य व्रतिनी जांणि रे । सं० ॥५॥ बिलाड देखी बीहत्तो रहि सं०, मुषक रहि दिन-राति रे, सं० नारी पसु पिंडग जिहां सं०, तिहां रहित्तो संकाइ निरांत्ति रे, सं० ॥६॥ तरूअर प्रौढ उपरि रहि सं०, बीहइ पतन थकी कपी जेम रे, सं० पोपट पंजरमा रहि सं०, शब्द खटकई बीहइ तेम रे । सं० ॥७॥ तिम मुनिवर संका धरइ सं०, रहितो हृदय मझारि रे, सं० प्रथम वाडि जिनवर कहि सं०, श्री सी(सि)द्धांतमां सार रे । सं० ॥८॥ मोह मदननइं जीतवा सं०, मांड्यो एह उपाय रे, सं० सुखविजय कहिं आदरो सं०, जिम वाधि सुजस सवाय रे । सं० ॥९॥ इति प्रथम वाडि । ढाल - प्रथम जिनेसर प्रणमीइ - ए देशी ॥ बीजी वाडि विराधतां हां रे लागां पोढा पाप रे संयम रंग लागो रंग लागो जिम चोल रे सं० वचन विलास नारी तणां, हां रे करम बंध होइ आप रे सं० ॥१॥ वात विविध परि केलवी, हां रे म करो नारी वात रे सं० । सराग वचन सुंदरी तणां, हां रे लागई मीठा मन साथि रे सं० ॥२॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy