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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ८७ विशद छणावट करे छे तेमां ज सामान्य अवी ख्यात वीरगाथाना हेतुमां अने अनी शैलीमां, निरूपणरीतिमां जे साहित्यिक कलाकृति तरीकेनी परिणति स्पष्ट करे छे. परन्तु महाकाव्य पछी जे 'चरित' आव्यां अनुं शुं ? अनां कयां व्यावर्तक लक्षणो? महाकाव्यथी ते क्यां जुदु पडे छे ? शाथी जुदुं पडे छे ? - आ बधुं मीमांसामां नथी. 'चरित'ने महाकाव्यकुळमां ज मूकी देवायुं. संस्कृत महाकाव्यो सन्दर्भे विचारीओ तो 'रघुवंश'मां नायकवंश केन्द्रमां आव्यो छे अने ते निमित्ते कथाश्रये ज शब्दवैचित्र्ये साहित्यिक संसिद्धि जोडाई छे, मात्र कथा ज नहीं. शुं बन्युं ओटलुं ज नहीं, केवी रीते बन्युं अनुं रसवाही तत्त्व अने ओ रीते ज साहित्यिक छटाओ, कल्पनो, चित्रणो अने अलङ्कार-रसनो आविष्कार अमां थयो जे 'मात्र' वीरगाथाने कथागत रस औत्सुक्यने नवा आयाम साथे सिद्ध कर्यो. शिशुपालवधमां ओ रीते महत्त्वनी घटना केन्द्रमा आवी. परन्तु आनी पडछे 'हर्षचरित' क्यां जुदुं पडे ? जो के पूर्ण वाचन-अभ्यासना आधारे आपणे तारवी शकीओ छीओ के चरितमां नायक ज केन्द्रमां आवे छे, अनी ज वात मुख्य छे. बुद्धचरित वगेरे पण ओ रीते समजी शकाशे. पछीना गाळामां तो प्राकृतमां चरितकुळमां पूर आव्युं अने ओमांथी ज मात्र वीरगाथा के मात्र महाकाव्यथी जुदां पाडतां लक्षणो प्रगट थयां. मारा अभ्यासने आधारे हुं मानू छु के आ चरितकुळमां ज जैनस्रोतना रासनी अनेक रचनाओ आवी. भरतचक्रवर्तीनुं समग्र जीवन ओक जुदुं ज रूप छे अने अना ज जीवननी मुख्य घटनाने केन्द्रमा लावीने शालिभद्रसूरि 'भरतेश्वर बाहुबली' नवी रचना आपे ते चरितना ज नाट्यात्मक मर्मस्पर्धी केन्द्रीभूत अर्बु प्रस्फुरण छे. चरितकाळे प्राकृतमां ज गेय देशीओनो, रासक छन्दमां गानढाळमां वस्तुनिर्वहणनो आरम्भ थई चूक्यो हतो. अनुं ज अनुसन्धान 'भरतेश्वर-बाहुबलि' छे. चरित छ, विशेष प्रेरक, बोधक, मूळ तत्त्वने ज केन्द्रमा लावतुं लघुचरित छे. शालिभद्र पण स्पष्ट लखे ज छे के भरत नरेन्द्रना चरितने हुं रासकमां बांधुं छु. ओ ओके गाईने अन्य समुदाय माटे रजू करवानी अथवा तो नित्यपाठनी लघुचरित रचना छे. अने अन्ते फलश्रुतिमां पण स्पष्ट जणाव्युं छे के जे आनुं पठन करशे ते नवनिधि प्राप्त करशे. परन्तु आपणे आपणां मध्यकालीन साहित्यना इतिहासमां स्वरूप दाखल ओवी 'रास' रचना तरीके समावी लीधी अने समूहगेयरूपमां गवाती कथाश्रयी जैनस्रोतनी रचनाओ मानी बेठा अने शालिभद्रसूरिनी कृतिने आरम्भनी रासस्वरूपनी कृति मानीने चाल्या.
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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