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अनुसन्धान- ७५ (१ )
भारतीय संस्कृतिना पुरोधा : ऋषभदेव
भगवान ऋषभदेव.
भारतवर्षना आदिपुरुष : आदिनाथ : बाबा आदम : अदबद दादा !
आदम, Adam अने संस्कृतना 'आदिम' आ त्रणे शब्दो ओक ज कुळमूळना होय, अने ओक ज 'आदिपुरुष' माटे प्रयोजाया होय, अ विषे हवे शङ्का खवाने कोई ज कारण नथी.
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- विजयशीलचन्द्रसूरि
आदमनो वंशज ते आदमी आदमनो पूर्वज ते पण आदमी ज. अ त्यारे
ते काळे ते समये प्राकृत अथवा प्राकृतिक अवस्थामां जीवतो हतो : निर्बन्ध, निःस्पृह, निष्पाप ! अने सांस्कृतिक बनावनार पुरुष ते आ आदिपुरुष आदिनाथ.
प्रकृतिना आदिम के पछी सनातन वहेणने संस्कृतिमां ढाळवानुं युगवर्ती अने पराक्रमी काम से आदिनाथे कर्यु. ओमणे भाई अने बहेनने एकमेकना भोगसाधन बनतां निवार्यां, अने स्त्री-पुरुषना सम्बन्धोमां पवित्र मर्यादानुं ओक तत्त्व रोप्यं. आ पवित्रतानी अने मर्यादानी रखेवाळी ओमणे 'समाज'ना शिरे स्थापी, अने समाज तेनो निर्वाह करी शके ओ माटे तेमणे 'लग्न' के 'विवाह'नी व्यवस्था आपी.
क क्रान्ति हती : प्रकृतिने संस्कृतिमां रूपान्तरित करनारी क्रान्ति. समाज-रचना साथे अनेक तत्त्वो संकळातां होय छे : भय, अपराध, दण्ड, न्याय-अन्याय, क्षमा, नियमो वगेरे. आ बधांयने सांकळी ले तेवुं अक परिबळ ते नीति. आदिपुरुषे जगतने 'नीति' शीखवाडी. कोईओ कोईनी वस्तु, वृक्षो, जमीन, स्त्री वगेरे पडावी न लेवुं; अवुं करे तो ते अपराध बने, ओवो अपराध करे तेने दण्ड थाय आ नीति समाजमां सौमनस्य अने सामंजस्य बनी रहे अ आ नीतिनो लाभ कहो के फळ होय छे. नीति सदाचार अने दुराचार वच्चे भेद आंके छे. नीति सज्जन अने दुर्जननो तफावत पण स्पष्ट करी आपे छे. दुराचरण अने दुर्जनता ते असामाजिक बाबतो होवानुं नीतिना नियमो द्वारा सूचित थाय छे. आ बधुं आदिनाथे शीखव्युं.
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