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________________ ७४ पाछला भागे होवाथी) ठीक ठीक महेनते वांचीने अहीं आप्यो छे. आनाथी इलाही संवतना दुर्लभ लेखोमां एकनो उमेरो थाय छे. साथे साथे जैनाचार्योनी दीर्घदृष्टि, समभाव, उदारताना पावन दर्शन पण थाय छे. परदेशी मूर्तिभंजक आक्रामको भारतमां आवीने मूर्तिओनुं भंजन करतां करतां छेवटे अहीं स्थायी थया अने भारतनी सर्वसमावेशक संस्कृतिना रंगे रंगाई शांत थया. अनुक्रमे ए विधर्मी शासको मन्दिरोना निर्माण माटे भूमिदान पण कर्यां, अनुदान अने अनुमति पण आपता थया; क्रमे क्रमे मूर्तिओनी पलांठी नीचे एवा मूर्तिभंजकोनां नाम पण लखायां! भारतीय संस्कृति अने जैन संस्कृतिनी आ अद्भुत परिणति छे अने मानवसभ्यतानी दृष्टिए तेनुं अपार महत्त्व छे. थाय. * पातिसाहि श्री अकबर प्रवर्तित संवत् ४१ वर्षे फागुण दि ११ गुरुदिने श्री हलवद राजधाने वास्तव्य श्रीश्रीमाली ज्ञातीय वृद्ध शाखायां दो० डूंगर भार्या रमाइ तत्पुत्र दोशी पदमा स्वश्रेयोर्थं श्री शीतलनाथबिम्बं श्रीशीतलनाथ भगवाननी प्रतिमा परनो लेख (फोटा उपरथी) रापितं प्रतिष्ठितं श्री ५ श्री विजयहीर सूपट्टालंकरण श्री ५ विजयसेनसूरिभिः । 44. अनुसन्धान- ७५ ( १ ) भाषान्तर : 'बादशाह श्री अकबरे प्रवर्तावेला संवत् ४१ना वर्षे फागुण सुदि ११ गुरुदिने श्री हलवद राजधानीना वासी श्री श्रीमालीज्ञातीय वृद्ध शाखामां दोसी डूंगर, तेनी भार्या रमाई, तेना पुत्र दोसी पदमाए स्वश्रेयार्थे श्री शीतलनाथनुं बिम्ब भराव्यं, श्री हीरविजयसूरिना पट्टालंकार श्री विजयसेनसूरिए प्रतिष्ठित कर्यु. " इलाही संवत् ४१ ए वि.सं. १६५२ थाय छे. अने ई.स. १५९५ लगभग *
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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