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सप्टेम्बर
२०१८
एक दुर्लभ प्रतिमालेख
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७३
उपा. भुवनचन्द्र
बादशाह अकबरे 'दीने इलाही' नामे एक नूतन धार्मिक पंथ के सम्प्रदाय स्थाप्यो हतो, अने आवा ज नामनो संवत पण शरू कर्यो हतो - जेनी खबर बहु ओछा लोकोने हशे. दीने इलाही पंथ ई.स. १५४८मां स्थापेलो, ज्यारे संवत्नी शरुआत पोताना राज्याभिषेकना वर्षथी - ई.स. १५५५ थी - करी होवी जोईए एवो निष्कर्ष अन्य आधारोंथी विद्वानोए काढ्यो छे. जो के आ संवत् लांबो समय चाल्यो नहीं. ७२ वर्ष सुधीना उल्लेखो मळे छे, पछी नथी मळता.
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बादशाह अकबर विविध धर्मना गुरुओ / पण्डितो साथे धर्मचर्चा करता. श्री जिनचन्द्रसूरि, श्री विजयहीरसूरि, वा. शान्तिचन्द्र - सिद्धिचन्द्र तथा उपा. पद्मसुन्दर सा बादशाहना परिचय तथा तेमनी प्रेरणाथी करेलां सत्कार्योनां दस्तावेजी प्रमाणो मळे छे.
जैन संघोनी एक स्वस्थ परम्परा रही छे के जे समये जेनुं राज्य प्रवर्तमान होय ते राजानुं नाम नवा बंधाता देरासरमां अथवा प्रतिमाजीना लेखमां लखवं. आ परिपाटी अनुसार मुस्लिम शासको बादशाह, नवाब, सूबा नां नाम शिलालेखोमां लखायां छे. अकबरना सम्बन्धमां विशेषता ए छे के नेमणे चलावेला संवत्नो पण शिलालेख-प्रतिमालेखमां एटली ज सहजताथी उल्लेख थयो छे. आ लेखन कोई शिल्पी के श्रेष्ठीए करी नाखेलुं एवं न मानवुं, कारण के संस्कृतमां लखायेला आवा लेखोनुं लखाण विद्वान मुनिओ ज करता हता. जो के इलाही संवतना प्रतिमालेखो बहु जूज मळे छे. आवा एक दुर्लभ प्रतिमालेखनी माहिती आ स्थळे आपवी छे.
हळवदना जिनालयमां आवा प्रतिमालेखयुक्त मूर्ति विराजमान छे. मोटा देरासरना मूलनायक श्रीवासुपूज्यस्वामी छे अने ते श्रीविजयसेनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित छे. देरासरना परिसरमां बीजुं नानुं जिनालय छे, तेमां मूळनायक श्रीशीतलनाथ भगवान छे. आ प्रतिमाजी थोडा वर्ष पूर्वे गाममांथी ज खोदकाम करतां नीकळ्या छे. आ प्रतिमाजीनो लेख इलाही संवतनो छे.
लेख मूर्तिनी बेठकमां, पण पाछला भागे छे, जे प्रतिष्ठा थई जवाथी वांची शकाय तेम नथी; परन्तु प्रतिष्ठा वखते अथवा प्रतिमाजी नीकळ्या त्यारे सुज्ञ श्रावकोए लेखनी छबी पाडी लोधेली अने संघ पासे ते सचवाई छे. हळवद संघना कार्यकर्ताओना सौजन्यथी ए छबी (फोटो) जोवा - वांचवा मळी. संघनी अनुमतिथी ए लेख सम्पादित करी अहीं रजू कर्यो छे. साथे साथे श्रीवासुपूज्यस्वामीनो लेख (ए पण प्रतिमाजीना