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________________ १७८ अनुसन्धान-७५(१) कल्पमहाभाष्य का थोडा अंश अलब्ध है और व्यवहारमहाभाष्य पूर्णतया अलब्ध - ऐसा मानना होगा। ४. दोनों महाभाष्य मिलकर १२००० गाथाएँ होगी। ५. संघमाणिक्यगणि के सामने यह पूरा बृहद्भाष्य ग्रन्थ उपस्थित होगा। बृहत्कल्पसूत्र और उसके विवरणों का वर्णन अब थोडी बातें इस ग्रन्थ के बारे में - इस ग्रन्थ का नाम 'बृहत्कल्पसूत्र' है। जैन संघ के मान्य, विद्यमान आगम--ग्रन्थ ४५ हैं। उनमें छ आगम 'छेदसूत्र' के नाम से जाने जाते हैं। साध्वाचारों के विषय में उत्सर्ग और अपवाद - मार्ग का एवं प्रायश्चित्तविधि का प्रतिपादन, मुख्यतया, इन ग्रन्थों में हुआ है। इन छ ग्रन्थों में एक बडा एवं मुख्य ग्रन्थ है बृहत्कल्पसूत्र । पाक्षिकसूत्र में तीन कल्पसूत्र के नाम आते हैं - 'कप्पो', 'चुल्लकप्पसुयं', 'महाकप्पसुयं' । इनमें से 'कप्पो' नाम इसी ग्रन्थ के लिए प्रयुक्त है। यह 'कल्प' ग्रन्थ सूत्रात्मक है। इसका प्रथम सूत्र - 'नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे तालपलंबे अभिन्ने पडिगाहित्तए'९० ॥ और अन्तिम सूत्र - 'छव्विहा कप्पट्ठिती पण्णत्ता ... थेरकप्पट्ठिति त्ति बेमि'९१ । इस सूत्र के प्रणेता चतुर्दश पूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी हैं। उन्होंने ही इस सूत्र पर नियुक्ति भी बनाई है। 'नियुक्ति' गाथाबद्ध होती है । वह बहुत संक्षेप में विवरण देती है, अतः उस पर 'भाष्य' बनाया जाता है। ___ 'कल्प' के उपर दो भाष्य रचे गये हैं : लघुभाष्य और बृहद्भाष्य । लघुभाष्य का मुद्रित गाथा-प्रमाण ६४९० है। इसके प्रणेता श्रीसंघदासगणि क्षमाश्रमण वैसे भाष्य, नियुक्ति का विस्तृत विवरण ही होता है । परन्तु आगे चलकर, नियुक्ति का कद अत्यन्त लघु होने के कारण, ऐसी स्थिति बनी कि
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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