SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर २०१८ तो शब्दभेद से एकसमान निरूपण दोनों चूर्णियों में मिलता है, और अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल रहा है, तो यह निरूपण - साम्य हमें ऐसा मानने में बाध्य करता है कि दोनों चूर्णियों के कर्ता एक ही होंगे। जरा स्पष्टता से इस विषय को देखें - 今 कल्पभाष्य की गा. ७६ के अनुसार, 'पंचण्ह वि' और 'बेंदियमादी कमविसोही' पाठ का, 'एकेन्द्रियों में सर्व- अल्प अक्षर, उससे अधिक अधिक द्वीन्द्रिय आदि में' ऐसा विवरण तो शास्त्रों में सर्वत्र मिलता है । इसी बात को मन में रखकर कल्प- वृत्तिकार ने इस गाथा की वृत्ति में लिखा कि " पञ्चानामपि पृथिवीकायिकादीनां वनस्पतिकायपर्यन्तानां स्त्यानगृद्धिनिद्रासहितेन ज्ञानावरणोदयेन ‘अक्षरं' ज्ञानं ‘अव्यक्तं' सुप्त-मत्त - मूच्छितादेरिवाऽस्फुटम्, अतो न तत्रापि सर्वथा ज्ञानमावृतम् " । वृत्तिकार का यहाँ तक का निरूपण परम्परागत रूप का है । आगे चलकर वे चूर्णिकार के अभिप्राय को भी बता देते हैं "तथापि पृथिवीकायिकानामत्यस्फुटम्, ततोऽप्कायिक- तेजस्कायिक- वायुकायिकवनस्पतिकायिकानां क्रमेण विशुद्धतरम्" । इतना लिखकर वे स्पष्टता देते हैं कि “इदं चूर्णिकारवचनाल्लिखितम् "५९ । " १६७ — ऐसा लिखने का मतलब इतना ही कि स्वयं वृत्तिकार के पास, चूर्णिकार के उक्त वचन के अलावा, इस बात के लिए, यानी पांच स्थावरकायों में चैतन्यविशुद्धि की क्रमिक वृद्धि के बारे में, कोई आधार नहि होगा । तो उन्होंने कह दिया कि यह बात हमने 'चूर्णिकार के वचन के आधार पर लिखी है । और अपना आरूढ मन्तव्य तो उन्होंने पहलेवाली पंक्तियों में लिख दिया है। मतलब कि ‘पांचों स्थावरों में सर्वाल्प चैतन्य है, मगर परस्पर में अल्प - बहुत्व की बात नहि' । अब हमारी मूल बात : यह निरूपण कल्पचूर्णि में और नन्दीचूर्णि में - दो में ही प्राप्त है, अतः इन दोनों का कर्ता एक ही व्यक्ति होना चाहिए, ऐसा हमें लगता है। दूसरी बात : नन्दीचूर्णि में 'अक्षरपटल' (अक्खरपडलं) नाम का खास अधिकार चूर्णिकार ने रखा है । उसमें उन्होंने कल्पभाष्य की ४ संपूर्ण गाथाएँ एवं एक गाथा का प्रतीकांश उद्धृत कर उन सभी पर विवरणात्मक चूर्णि भी लिखी
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy