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________________ सप्टेम्बर जीतचूर्णिवाले सिद्धसेन नहि होंगे तो, चूर्णिकार सिद्धसेन को और निशीथभाष्यकार सिद्धसेन को एक मानने की, एवं उस आधार पर तीनों भाष्यों के कर्ता के रूप में सिद्धसेनगणि को ही स्वीकारने की कल्पना कितनी अतार्किक एवं क्लिष्ट बन जाती है ? । कदाचित् निशीथभाष्य के कर्ता या संकलयिता सिद्धसेनगणि, जीतचूर्णिकार सिद्धसेन ही हो, तो भी कल्प - व्यवहार - भाष्य का कर्तृत्व उनके साथ जोडना उचित नहि होगा। क्योंकि उन दो भाष्यों के कर्ता जिनभद्रगणि से बहुत पूर्वभावी हैं ऐसा प्रतीत होता है । २०१८ १६३ एक बात यह भी है कि यदि सिद्धसेनगणि ही सब के प्रणेता हैं ऐसा मान लें, तो फिर यह भी स्वीकारना होगा कि संघदास क्षमाश्रमण नाम के व्यक्ति काल्पनिक हैं, या उन्होंने किसी ग्रन्थ की रचना नहि की है । क्योंकि उनकी मानी जाती रचना तो, इनके मत से, अन्यकर्तृक हो जाएगी । तब उनको सदियों से भाष्यकार के रूप में जो प्रसिद्धि मिली है वह गलत ही हो जाएगी ! । १५१ कल्पभाष्य से महाभाष्य परवर्ती है इसका एक अन्य भी प्रमाण है 1 विशेषावश्यकभाष्य में गा. ४६९ में "लिंगमणुमाणमण्णे सारिक्खाई पभासंति""" ऐसा पाठ है, उसमें उन्होंने 'अण्णे' कहते हुए अन्य मत प्रस्तुत किया है । आगे की गाथाओं में इस अन्य मत की बात एवं उसका खण्डन किया गया है। ये 'अण्णे' अन्य मत कौन है ?, कहाँ का है ? शायद आज तक इसकी ओर किसी का ध्यान नहि गया है। स्वयं मलधारीजी महाराज ने भी अपनी वृत्ति में 'अन्ये, कैश्चित्' कहकर छोड़ दी है इस बात को, वे कौन हैं और यह बात कौन से शास्त्र में है ? इसकी स्पष्टता उन्होंने भी नहीं दी । यह मत कल्पभाष्य का मत है, और वे 'अन्ये' कल्पभाष्यकार हैं । कल्पभाष्य में ही सर्वप्रथम बार द्विविध उपलब्धि एवं त्रिविध अनुपलब्धि की बात उनका विवरण आता है । कल्पभाष्य गा. ४५ से गा. ५४ में इस विषय का निरूपण है, और इसी का खण्डन 'अण्णे' कहते हुए महाभाष्यकार ने किया है । अब अगर कल्पभाष्यकार पूर्ववर्ती न होते तो उनकी बात का निर्देश व निरसन महाभाष्यकार श्रीजिनभद्रगणि कैसे करते ? । — अब रही बात 'सिद्धसेन' की, या उस नाम की । तो भाष्य की गाथा ३२८९ में आते 'सिद्धसेणो' पद से 'भाष्यकार सिद्धसेन हो और दोनों नाम एक
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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