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________________ १६२ अनुसन्धान-७५ (१ ) जं चोद्दसपुव्वधरा, छट्ठाणगया परोप्परं होंति । तेण उ अनंतभागो, पण्णवणिज्जाण, जं सुत्तं ॥ १४२ ॥ इस सन्दर्भ में गा. १४० में 'जम्हा सुएऽभिहियं' यह अंश स्पष्ट निर्देश देता है कि महाभाष्यकार सूत्र का हवाला दे रहे हैं। वह सूत्र 'कल्पभाष्य' है यह कहने की आवश्यकता नहीं । अर्थात् महाभाष्य में आती गा. १४१-४२ कल्पभाष्य से उद्धृत हैं, नहीं कि महाभाष्य से कल्पभाष्य में उद्धृत । श्रीमालवणिया ने इस विषय में भी कहा है कि 'जम्हा सुएऽभिहियं' का तात्पर्य 'श्रुत' यानी 'सूत्र' से है, भाष्य से नहि 1 ४९ यहाँ यदि उन्होंने 'पण्णवणिज्जा भावा' इस गाथागत अर्थ का प्रतिपादक कोई आगम- सूत्र - प -पाठ निर्दिष्ट किया होता, तो उनकी इस कल्पना का स्वीकार होता । लेकिन उन्होंने ऐसा कोई सूत्र नहि बताया है ! । वस्तुत: यहाँ एक बात की कमी महसूस होती है, वह है परम्परा की अभिज्ञता । जहाँ तक हम, कोई भी संशोधक एवं समीक्षक, परम्परा से अभिज्ञ नहि होते हैं और परम्पराप्राप्त सभी बातों को गलत मानकर ही चलते हैं वहाँ तक हमें यथार्थ तथ्य प्राप्त नहि होता है, और अगर प्राप्त हो तो वह पूर्वग्रहभावित ही होता है । I यद्यपि परम्परा पञ्चाङ्गी को 'सूत्र' रूप में प्रामाण्य देती है । अर्थात् 'सूत्र' शब्द, आवश्यकता के अनुसार, सूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति - इन सब में लागू होता है । लेकिन यहाँ तो 'सूत्र' नहीं, अपितु 'श्रुत' शब्द प्रयुक्त है, और भाष्य भी श्रुत ही है, वहाँ जो कहा है वह ऐसा है - ऐसा महाभाष्यकार का कथन है । सार यह कि महाभाष्य में ये दो गाथाएँ कल्पभाष्य से ली गई हैं, और इससे कल्पभाष्य एवं भाष्यकार जिनभद्रगणि के पूर्ववर्ती हैं यह स्वयं सिद्ध हो जाता है । एक और बात : कल्पभाष्य गा. ९६५ की वृत्ति में महाभाष्य की गा. १४३ ‘अक्खरलंभेण समा०' उद्धृत की गई है ५° । यदि गा. १४१ - ४२ भी इस प्रकार कहीं से उद्धृत होनेवाली गाथाएँ होती तो एक तो उन दोनों को भाष्यगाथा का क्रम नहि मिलता, अथवा वृत्तिकार स्पष्टीकरण अवश्य देते । तो, जैसे कि पं. मालवणिया कहते हैं वैसे, कल्पभाष्यकार जिनभद्रगणि के परवर्ती या समकालीन सिद्ध नहि होते हैं, अतः यदि कल्पभाष्य के प्रणेता
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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