SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर - २०१८ १५९ १४) 'पढम-बिइएसु कप्पे' (गा. ४२९४) । (कल्पे - कल्पाध्ययने द्वितीय तृतीययोरुद्देशयोः) । ये सभी उल्लेख या निर्देश इतना ही सूचित करते हैं कि व्यवहारभाष्यकार, अपनी ही पूर्वरचना स्वरूप कल्पभाष्य का हवाला, इन इन गाथागत विषयों के बारे में, देते हैं। जाहिर है कि स्वयं एक ही भाष्यकार दोनों का प्रणेता न होते तो, ऐसा एवं ऐसे हवाला देना अशक्य था । हम हैरान हैं कि ये सब उल्लेख पूज्य श्रीपुण्यविजयजी की दृष्टि में क्यों नहि आये?, अगर उन्होंने व्यवहारभाष्य का अवगाहन इस दृष्टि से किया होता तो वे भी इसी निष्कर्ष पर आते, इसमें शंका को अवकाश नहीं । अस्तु । एक और बात : विक्रम की १६ वीं शती में हए वाचक संघमाणिक्यगणि नामक विद्वान् मुनि ने 'आगम-वाचनानुक्रम' नामक एक रचना की है। उसमें प्रत्येक आगम के आदि, अन्त इत्यादि की नोंध उन्होंने की है। इस नोंध में कल्प और व्यवहार के बारे में उन्होंने लिखा है कि - १. 'नो कप्पइ आमे तालपलंबे पडिगाहित्तए' । इति श्रीकल्प-व्यवहार-सूत्र वाचना । ग्रन्थाग्रं ४७० ॥ २. काऊण नमुक्कारं० (गाथा पूरी है)। इति श्रीकल्प-व्यवहार-लघुभाष्य ॥ ३. मंगलादीणि सत्थाणि... समत्था भवंति । इति श्रीकल्प-व्यवहार-चूर्णिः । ग्रं. १४००० । श्रीकल्प-व्यवहार-बृहच्चूणि नमः । ग्रं. १२००० ।। उपर के सभी उल्लेखों में उन्होनें 'कल्प-व्यवहार' दोनों को अखण्ड या संयुक्त एक ग्रन्थ दिखाये हैं। सूत्र-ऐक्य, भाष्य-ऐक्य और चूर्णि का भी ऐक्य । अर्थात् दोनों सूत्रों के कर्ता के ज्यों दोनों के भाष्य के कर्ता भी एक, एवं दोनों की चूर्णि के कर्ता भी एक। ___ चूर्णि से बृहच्चूर्णि के ग्रन्थान कम इसलिये होंगे कि बृहच्चूणि यानी विशेषचूणि में पीठिकांश की व्याख्या नहि की गई है । अतः उतना अंश कम होगा, ऐसा लगता है। __ हमारे दृष्टिकोण से, उपर्युक्त रीत्या, जब कल्प-व्यवहार - दोनों के भाष्यों की एककर्तृकता सिद्ध होती है तब, सवाल यह आएगा कि कर्ता का नाम
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy